भगवान कृष्ण के चार धाम: बद्रीनाथ से द्वारका तक आध्यात्मिक यात्रा की कथा

Thu 01-Jan-2026,02:21 AM IST +05:30

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भगवान कृष्ण के चार धाम: बद्रीनाथ से द्वारका तक आध्यात्मिक यात्रा की कथा भगवान-कृष्ण-के-चार-धाम
  • भगवान कृष्ण और अन्य देवताओं से जुड़े प्रमुख धाम.

  • धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व.

  • बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी और रामेश्वरम.

Maharashtra / Nagpur :

AGCNN / भारत की पवित्र भूमि पर जब भी चार धाम का नाम लिया जाता है, तो मन स्वतः ही भक्ति, यात्रा और आत्मिक शांति की ओर खिंच जाता है। ये चार धाम केवल तीर्थ नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक चेतना की चार दिशाएँ हैं, जहाँ भगवान के विभिन्न रूपों और लीलाओं की अनुभूति होती है। कई लोग इन्हें भगवान कृष्ण से जोड़कर भी देखते हैं, क्योंकि कृष्ण स्वयं विष्णु के अवतार हैं और चार धाम विष्णु परंपरा से गहराई से जुड़े हैं।

उत्तर दिशा में बद्रीनाथ है। हिमालय की गोद में बसा यह धाम अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। कहा जाता है कि यहाँ भगवान विष्णु ने घोर तप किया था। ऋषिकेश से आगे बढ़ते हुए, जैसे-जैसे पहाड़ ऊँचे होते जाते हैं, वैसे-वैसे मन का अहंकार छोटा होने लगता है। बर्फ से ढकी चोटियाँ और शांत वातावरण, साधक को भीतर की यात्रा पर ले जाते हैं।

पश्चिम दिशा में द्वारका स्थित है, जिसे भगवान कृष्ण की नगरी कहा जाता है। यही वह भूमि है जहाँ श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद अपना राज्य बसाया। समुद्र के किनारे बसी द्वारका आज भी कृष्ण की लीलाओं की साक्षी लगती है। लहरों की आवाज़ में जैसे बंसी की मधुर तान सुनाई देती हो। द्वारका सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि धर्म, नीति और करुणा का प्रतीक है।

पूर्व दिशा में पुरी है, जहाँ भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं। यहाँ भगवान एक अलग ही स्वरूप में दर्शन देते हैं—सरल, सुलभ और सभी को अपनाने वाले। पुरी की रथ यात्रा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, जहाँ भगवान स्वयं भक्तों के बीच आने का संदेश देते हैं। यह धाम सिखाता है कि ईश्वर महलों में नहीं, बल्कि जन-जन के हृदय में बसते हैं।

दक्षिण दिशा में रामेश्वरम स्थित है। यह धाम भगवान राम और भगवान शिव दोनों से जुड़ा है। समुद्र के किनारे बसे इस पवित्र स्थान पर राम ने लंका जाने से पहले शिवलिंग की स्थापना की थी। यहाँ की शांति, समुद्र की गहराई और मंदिर की गलियाँ आत्मा को स्थिर कर देती हैं।

इन चार धामों को जोड़ने वाली यात्रा केवल भौगोलिक नहीं होती, यह आत्मा की यात्रा होती है। बद्रीनाथ की तपस्या, द्वारका का धर्म, पुरी की भक्ति और रामेश्वरम की आस्था—इन सबका संगम ही भारत की आत्मा है। कहा जाए तो चार धाम की यात्रा स्वयं को जानने की यात्रा है, जहाँ हर कदम पर ईश्वर का सान्निध्य महसूस होता है।