WHO-आयुष पहल: पारंपरिक चिकित्सा को वैश्विक स्वास्थ्य मानक से जोड़ने की दिशा में बड़ा कदम
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डब्ल्यूएचओ और आयुष मंत्रालय की पहल से आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा को वैश्विक स्वास्थ्य मानकों में वैज्ञानिक मान्यता मिलेगी।
आईसीएचआई में पारंपरिक चिकित्सा कोडिंग से उपचारों की रिपोर्टिंग, अनुसंधान और नीति निर्माण में अंतरराष्ट्रीय सामंजस्य बढ़ेगा।
नई दिल्ली/ पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल को वैश्विक मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 20–21 दिसंबर, 2025 को नई दिल्ली में पारंपरिक चिकित्सा (टीएम) हस्तक्षेप कोड सेट विकास पर दो दिवसीय तकनीकी परियोजना बैठक का आयोजन किया। यह बैठक आयुष मंत्रालय और डब्ल्यूएचओ के बीच 24 मई, 2025 को हुए समझौता ज्ञापन के तहत अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य हस्तक्षेप वर्गीकरण (आईसीएचआई) में पारंपरिक चिकित्सा के लिए एक समर्पित मॉड्यूल विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
इस पहल के अंतर्गत भारत आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी (एएसयू) प्रणालियों को वैश्विक स्वास्थ्य ढांचे में सम्मिलित करने हेतु वित्तीय और तकनीकी सहयोग प्रदान कर रहा है। आईसीएचआई एक अंतरराष्ट्रीय मानक है, जो विभिन्न चिकित्सा हस्तक्षेपों को एक साझा भाषा में परिभाषित करता है। पारंपरिक चिकित्सा को इसमें शामिल करने से इन उपचार पद्धतियों की वैज्ञानिक स्वीकार्यता, पारदर्शिता और वैश्विक उपयोगिता बढ़ेगी।
बैठक का आयोजन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के उस दृष्टिकोण के अनुरूप है, जिसमें उन्होंने आयुष प्रणालियों को वैज्ञानिक और मानकीकृत तरीके से वैश्विक स्तर पर स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया है। आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा के अनुसार, यह समर्पित मॉड्यूल आयुष को साक्ष्य-आधारित और सुरक्षित वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली का हिस्सा बनाएगा।
तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता आयुष मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री कविता गर्ग ने की। इस दौरान भारतीय विशेषज्ञों की टीम ने आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य हस्तक्षेप कोड प्रस्तुत किए। डब्ल्यूएचओ के सभी छह क्षेत्रों के प्रतिनिधियों और 12 से अधिक देशों की भागीदारी ने इस पहल को वैश्विक स्वरूप प्रदान किया।
आईसीएचआई में पारंपरिक चिकित्सा के एकीकरण से उपचारों की प्रभावशीलता का बेहतर दस्तावेजीकरण, अनुसंधान और नीति निर्माण संभव होगा। यह पहल न केवल पारंपरिक चिकित्सा को वैश्विक पहचान दिलाएगी, बल्कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य सूचना प्रणालियों में इसके समावेश का मार्ग भी प्रशस्त करेगी।