बांग्लादेश में हिंसा भड़की: देशव्यापी अराजकता, अल्पसंख्यकों पर संकट
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ढाका से सिलहट तक फैली हिंसा ने बांग्लादेश को हिला दिया, युवा नेता की हत्या के बाद हालात तेजी से बिगड़े।
अख़बारों के दफ्तर और ऐतिहासिक स्थलों पर हमले, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
हिंसा का सबसे ज्यादा असर अल्पसंख्यक हिंदुओं पर, यूनुस सरकार की कानून-व्यवस्था पर काबू की क्षमता पर संदेह।
दिल्ली/ बांग्लादेश एक बार फिर अराजकता और अस्थिरता के दौर में प्रवेश करता दिख रहा है। राजधानी ढाका से लेकर सिलहट तक फैली हिंसा, लूटपाट और आगज़नी की घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हालात उस समय और बिगड़ गए, जब एक युवा राजनीतिक नेता की हत्या के बाद विरोध प्रदर्शन अचानक हिंसक हो गए।
सूत्रों के अनुसार, विरोध के नाम पर कई इलाकों में अख़बारों के दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया गया, जिससे प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इसके साथ ही, एक बार फिर बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के पैतृक आवास पर हमला किए जाने की खबर सामने आई है, जिसने राजनीतिक और ऐतिहासिक संवेदनशीलता को और बढ़ा दिया है।
इस हिंसा की सबसे बड़ी कीमत अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय चुका रहा है। कई इलाकों में हिंदू घरों, दुकानों और धार्मिक स्थलों को निशाना बनाए जाने की सूचनाएं हैं। भय और असुरक्षा के माहौल में बड़ी संख्या में लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर बताए जा रहे हैं। सामाजिक संगठनों का कहना है कि मौजूदा हालात में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है।
वर्तमान यूनुस सरकार पर हालात काबू में न रख पाने के आरोप लग रहे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि प्रशासनिक कमजोरी और राजनीतिक अस्थिरता के कारण हिंसक तत्वों को खुली छूट मिल रही है। वहीं सरकार की ओर से शांति बहाल करने और सख्त कार्रवाई के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर हालात अभी भी तनावपूर्ण बने हुए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो बांग्लादेश एक बार फिर राजनीतिक अराजकता की गहरी खाई में फिसल सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी स्थिति पर नज़र बनाए हुए है। अब बड़ा सवाल यही है कि क्या सरकार समय रहते हालात पर नियंत्रण पा सकेगी, या फिर देश को एक और लंबे अस्थिर दौर का सामना करना पड़ेगा।