कुलदीप सेंगर की डॉक्‍टर बेटी का खुला पत्र: न्याय, डर और प्रक्रिया पर बड़ा सवाल

Mon 29-Dec-2025,07:40 PM IST +05:30

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कुलदीप सेंगर की डॉक्‍टर बेटी का खुला पत्र: न्याय, डर और प्रक्रिया पर बड़ा सवाल Dr-Ishita-Sengar’s-Open-Letter-Sparks-Debate-on-Justice
  • डॉ. इशिता सेंगर के खुले पत्र ने न्याय, सोशल मीडिया ट्रायल और डर के माहौल पर गंभीर बहस छेड़ दी है।

  • पत्र में सोशल मीडिया ट्रायल, डर के माहौल और संस्थानों पर बढ़ते जनदबाव को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। न्यायिक प्रक्रिया, साक्ष्य और कानून को बिना भय के काम करने देने की उन्होंने सार्वजनिक अपील की।

Uttar Pradesh / Unnao :

नई दिल्ली/ उन्नाव रेपकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। 29 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कुलदीप सेंगर की जमानत पर रोक लगा दी। अब मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी, इससे पहले 23 दिसंबर को दिल्ली हाई कोर्ट ने कुलदीप सेंगर को जमानत दी थी।

डॉ. इशिता सेंगर (@IshitaSengar) द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर साझा किया गया एक भावनात्मक खुला पत्र इन दिनों देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। यह पत्र उन्होंने “भारत गणराज्य के माननीय प्राधिकारियों” को संबोधित करते हुए लिखा है, जिसमें उन्होंने बीते आठ वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा, सामाजिक नफरत, डर और संस्थागत चुप्पी पर गहरी चिंता व्यक्त की है।

डॉ. इशिता सेंगर ने अपने पत्र में स्वयं को एक “थकी हुई, भयभीत और टूटती आस्था वाली बेटी” के रूप में प्रस्तुत किया है, जो अब भी इस देश की न्याय प्रणाली पर उम्मीद लगाए बैठी है। उन्होंने लिखा कि उनकी पहचान को केवल “एक बीजेपी विधायक की बेटी” के रूप में सीमित कर दिया गया है, मानो इससे उनकी इंसानियत, सम्मान और बोलने का अधिकार समाप्त हो जाता हो।

पत्र में उन्होंने बताया कि पिछले आठ वर्षों से उनका परिवार कानून और संविधान पर भरोसा करते हुए शांत रहा। न कोई प्रदर्शन, न मीडिया ट्रायल, न ही सोशल मीडिया अभियान। उनका विश्वास था कि सत्य को शोर की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन इस चुप्पी की कीमत उन्हें लगातार अपमान, ऑनलाइन गालियों और यहां तक कि जान से मारने व बलात्कार जैसी धमकियों के रूप में चुकानी पड़ी।

डॉ. सेंगर ने लिखा कि सोशल मीडिया पर उन्हें रोज़ाना अमानवीय टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। यह नफरत केवल शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से तोड़ने वाली है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि वे “इतनी शक्तिशाली” हैं, तो फिर आठ वर्षों से उनकी आवाज़ क्यों नहीं सुनी गई?

पत्र में उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने हर दरवाज़ा खटखटाया, सरकारी कार्यालय, संस्थान, मीडिया हाउस, लेकिन उनकी बात इसलिए अनसुनी रह गई क्योंकि “सत्य असुविधाजनक” था। उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम को एक “निर्मित भय” बताया, जो इतना प्रभावशाली है कि न्यायपालिका, मीडिया और आम नागरिक तक दबाव में आ जाते हैं।

डॉ. इशिता सेंगर ने चिंता जताई कि जब जनभावना, आक्रोश और गलत सूचनाएं साक्ष्यों और कानूनी प्रक्रिया पर हावी होने लगें, तो एक सामान्य नागरिक के पास न्याय पाने का क्या रास्ता बचता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पत्र न तो किसी को धमकाने के लिए है और न ही सहानुभूति बटोरने के लिए, बल्कि केवल इसलिए है क्योंकि वे डर के बावजूद अब भी विश्वास करती हैं कि कहीं न कहीं कोई सुनेगा।

अपने पत्र के अंत में उन्होंने कानून से बिना डर के बोलने, साक्ष्यों की निष्पक्ष जांच और सत्य को सत्य के रूप में स्वीकार करने की अपील की। उन्होंने लिखा कि वे आज भी इस देश में विश्वास रखती हैं, लेकिन यह विश्वास टूटने की कगार पर है।

डॉ. इशिता सेंगर का यह पत्र केवल एक व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, बल्कि भारत में न्याय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सोशल मीडिया ट्रायल पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।

डॉ. इशिता सेंगर के पोस्ट पर सोशल मीडिया पर तीखी बहस

डॉ. इशिता सेंगर के सोशल मीडिया पोस्ट के बाद X पर तीखी और विभाजित प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ यूज़र्स ने उनके दर्द और मानसिक उत्पीड़न को समझते हुए न्यायिक प्रक्रिया और निष्पक्ष सुनवाई की वकालत की। कई लोगों ने कहा कि किसी भी नागरिक को केवल पहचान के आधार पर नफरत और धमकियों का सामना नहीं करना चाहिए। वहीं दूसरी ओर, कई यूज़र्स ने उन्नाव रेपकांड की पीड़िता के दर्द को सामने रखते हुए यह तर्क दिया कि दोषी को सख्त सजा मिलना जरूरी है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत पर रोक न्याय के पक्ष में कदम है। कुछ प्रतिक्रियाओं में सोशल मीडिया ट्रायल और मीडिया दबाव पर सवाल उठाए गए, तो कुछ ने इसे कानून के दायरे में सही फैसला बताया। कुल मिलाकर, डॉ. इशिता सेंगर की पोस्ट ने न्याय, संवेदना और जवाबदेही को लेकर सोशल मीडिया पर एक व्यापक बहस छेड़ दी है।

ऐश्वर्या सेंगर के ‘लड़ेंगे, हारेंगे नहीं’ पोस्ट पर X पर तीखी और भावनात्मक प्रतिक्रियाएं

कुलदीप सिंह सेंगर की बेटी ऐश्वर्या सेंगर द्वारा डॉ. इशिता सेंगर की पोस्ट X पर कॉमेंट में लिखा था “लड़ेंगे, हारेंगे नहीं” संदेश के बाद X पर जबरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली। बड़ी संख्या में यूज़र्स ने उन्नाव रेपकांड को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए दोषी को किसी भी सूरत में जमानत न देने और फांसी की सजा देने की मांग की। कई टिप्पणियों में पीड़िता और उसके परिवार के साथ हुई कथित घटनाओं, जैसे पिता की मौत, गवाहों की हत्या और रिश्तेदारों की मौत का हवाला देते हुए न्यायिक सख्ती की बात कही गई। वहीं कुछ यूज़र्स ने यह भी कहा कि अदालतों को जनभावनाओं या सोशल मीडिया दबाव के बजाय केवल सबूतों और कानून के आधार पर फैसला लेना चाहिए। कुछ प्रतिक्रियाओं में ऐश्वर्या सेंगर के संघर्ष को साहसपूर्ण बताया गया और उन्हें हिम्मत बनाए रखने का संदेश दिया गया, जबकि अन्य ने स्पष्ट किया कि न्याय तभी पूरा होगा जब दोष सिद्ध होने पर सख्त सजा दी जाए। कुल मिलाकर, यह पोस्ट न्याय, संवेदना, आक्रोश और कानून के संतुलन को लेकर सोशल मीडिया पर गहरी और विभाजित बहस का कारण बन गई।

कुलदीप सिंह सेंगर मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले और उनकी बेटियों की सोशल मीडिया प्रतिक्रियाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह प्रकरण अब केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं रहा, बल्कि सामाजिक संवेदना, आक्रोश और न्यायिक प्रक्रिया के टकराव का प्रतीक बन चुका है। एक ओर पीड़िता और उसके परिवार के लिए कठोरतम सजा की मांग तेज है, तो दूसरी ओर कानून को बिना दबाव और भय के अपना काम करने देने की अपील भी सामने आ रही है। यह पूरा घटनाक्रम इस सवाल को और गहरा करता है कि न्याय व्यवस्था कैसे जनभावनाओं, मीडिया ट्रायल और सोशल मीडिया दबाव से ऊपर उठकर निष्पक्ष निर्णय दे सके। अंततः, लोकतंत्र और संविधान की मजबूती इसी में है कि सत्य और साक्ष्य के आधार पर न्याय हो न शोर से, न नफरत से, बल्कि कानून के संतुलित और निर्भीक पालन से।