भेजा-बकौर कोसी पुल अंतिम चरण में, उत्तर बिहार की कनेक्टिविटी को मिलेगा नया आयाम

Fri 19-Dec-2025,05:22 PM IST +05:30

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भेजा-बकौर कोसी पुल अंतिम चरण में, उत्तर बिहार की कनेक्टिविटी को मिलेगा नया आयाम
  • भेजा-बकौर कोसी पुल 13.3 किमी लंबा होकर मधुबनी-सुपौल-सहरसा को एनएच-27 से जोड़कर यात्रा दूरी 44 किमी घटाएगा।

  • 1101.99 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा पुल भारत माला परियोजना के तहत उत्तर बिहार में कनेक्टिविटी और निवेश को नई दिशा देगा।

Bihar / Supaul :

Bihar/ कोसी नदी के बाढ़ मैदानों में दशकों से अलगाव, असुरक्षा और लंबी यात्राओं से जूझ रहे उत्तर बिहार के लोगों के लिए अब बदलाव की ठोस तस्वीर उभर रही है। 13.3 किलोमीटर लंबा भेजा-बकौर कोसी पुल अपने निर्माण के अंतिम चरण में है और इसके चालू होते ही मधुबनी, सुपौल, सहरसा सहित पूरे क्षेत्र की कनेक्टिविटी की परिभाषा बदल जाएगी। यह पुल न केवल यात्रा दूरी को लगभग 44 किलोमीटर कम करेगा, बल्कि बाढ़ प्रभावित इलाकों को सीधे राष्ट्रीय राजमार्ग-27 और पटना से जोड़ेगा।

भारत सरकार की भारत माला परियोजना (फेज-1) के अंतर्गत बीआरटी कॉरिडोर में ईपीसी मोड पर बन रहा यह पुल लगभग 1101.99 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया जा रहा है। परियोजना के वित्त वर्ष 2026-27 में पूर्ण होने का लक्ष्य रखा गया है। इसके पूरा होते ही नेपाल, पूर्वोत्तर भारत और सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए भी वैकल्पिक व सुगम मार्ग उपलब्ध होगा, जिससे सीमा पार व्यापार, क्षेत्रीय वाणिज्य और निवेश को नई गति मिलेगी।

यह पुल केवल बुनियादी ढांचा नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक बदलाव का वाहक है। बाढ़ के दिनों में जहां गांव महीनों तक कट जाते थे, अब किसानों को अपनी उपज बाजार तक पहुंचाने में डर नहीं रहेगा। छात्रों की शिक्षा बाढ़ से बाधित नहीं होगी और व्यापारियों को समय व लागत दोनों की बचत होगी। स्थानीय स्तर पर परिवहन, छोटे व्यवसाय और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।

सहरसा निवासी शिक्षक रोशन कुमार के लिए यह पुल रोज़मर्रा की कठिन यात्राओं से मुक्ति का प्रतीक है। वे बताते हैं कि अभी उन्हें मधुबनी पहुंचने के लिए 70 से 150 किलोमीटर तक अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है, लेकिन पुल के बाद यह दूरी काफी कम हो जाएगी। वहीं, एक मेडिकल स्टोर संचालक पंकज कहते हैं कि अब बाढ़ के समय मरीजों को अस्पताल पहुंचाने में देरी से जान गंवाने का डर नहीं रहेगा। एम्बुलेंस की निर्बाध आवाजाही पूरे क्षेत्र के लिए जीवनरक्षक साबित होगी।

युवा पीढ़ी भी इस बदलाव को लेकर उत्साहित है। छात्रा नेहा बताती हैं कि मानसून में स्कूल पहुंचना कितना जोखिम भरा होता था, लेकिन पुल बनने से सुरक्षा और भरोसा दोनों बढ़ेंगे। कुल मिलाकर, भेजा-बकौर कोसी पुल उत्तर बिहार के लिए सिर्फ इस्पात और कंक्रीट की संरचना नहीं, बल्कि आशा, सम्मान और विकास की जीवनरेखा बनकर उभर रहा है।