सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अरावली पहाड़ियों की वैज्ञानिक परिभाषा तय, अवैध खनन पर रोक और पारिस्थितिकी संरक्षण को कानूनी मजबूती मिली

Sun 21-Dec-2025,08:58 PM IST +05:30

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अरावली पहाड़ियों की वैज्ञानिक परिभाषा तय, अवैध खनन पर रोक और पारिस्थितिकी संरक्षण को कानूनी मजबूती मिली Supreme-Court-Safeguards-Aravalli-Hills-with-Uniform-Mining-and-Ecology-Policy
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अरावली पहाड़ियों की नई वैज्ञानिक परिभाषा तय, खनन नियंत्रण, पारिस्थितिकी संरक्षण और सतत विकास को मिली मजबूती।

  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अरावली पहाड़ियों की वैज्ञानिक परिभाषा तय, अवैध खनन पर रोक और पारिस्थितिकी संरक्षण को कानूनी मजबूती मिली।

  • 100 मीटर ऊंचाई और 500 मीटर रेंज मानदंड से अरावली क्षेत्र में लैंडस्केप-स्तर का संरक्षण और सतत खनन सुनिश्चित हुआ।

  • ICFRE द्वारा प्रस्तावित MPSM से अरावली में विकास, पर्यावरण सुरक्षा और पारदर्शिता के बीच संतुलन स्थापित होगा।

Maharashtra / Nagpur :

नागपुर/ 21 दिसंबर, 2025 अरावली पर्वतमाला भारत की न केवल सबसे प्राचीन भूवैज्ञानिक संरचनाओं में से एक है, बल्कि यह देश की पर्यावरणीय सुरक्षा प्रणाली की रीढ़ भी मानी जाती है। हाल के वर्षों में अनियंत्रित खनन, शहरीकरण और अवैध निर्माण ने इस संवेदनशील पारिस्थितिकी को गंभीर खतरे में डाल दिया था। इसी पृष्ठभूमि में नवंबर–दिसंबर 2025 के दौरान भारत के उच्चतम न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं के संरक्षण को लेकर ऐतिहासिक और दूरगामी प्रभाव वाला निर्णय दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विकास तभी सार्थक है जब वह पर्यावरणीय संतुलन के साथ हो। अरावली को लेकर दिया गया यह फैसला न्यायपालिका की उस सोच को दर्शाता है, जिसमें पारिस्थितिकी, जल सुरक्षा और भविष्य की पीढ़ियों के हितों को सर्वोपरि रखा गया है।

अरावली का भौगोलिक, ऐतिहासिक और पारिस्थितिक महत्व

अरावली पर्वतमाला दिल्ली से लेकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली हुई है और लगभग 37 जिलों के पर्यावरणीय संतुलन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। यह पर्वत श्रृंखला थार रेगिस्तान के विस्तार को रोकने वाली प्राकृतिक दीवार के रूप में कार्य करती है।

इतिहासकारों और भूवैज्ञानिकों के अनुसार, अरावली की आयु करोड़ों वर्षों में आंकी जाती है, जो इसे हिमालय से भी अधिक प्राचीन बनाती है। पारिस्थितिक दृष्टि से अरावली क्षेत्र:

वर्षा जल के प्राकृतिक संग्रह और भूजल रिचार्ज में सहायक है

वन्यजीवों के लिए आवास और गलियारे प्रदान करता है

दिल्ली-एनसीआर के लिए “ग्रीन लंग्स” की भूमिका निभाता है

इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने अरावली को “राष्ट्रीय पारिस्थितिक संपदा” के रूप में संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

सुप्रीम कोर्ट और MoEFCC समिति की भूमिका

9 मई 2024 के आदेश के तहत गठित समिति का उद्देश्य अरावली पहाड़ियों की एक समान, वैज्ञानिक और कानूनी रूप से लागू की जा सकने वाली परिभाषा तय करना था। समिति में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के नेतृत्व में चार राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी, भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI), भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) के विशेषज्ञ शामिल थे।

समिति ने यह पाया कि अलग-अलग राज्यों में अरावली को लेकर अलग मानदंड लागू थे, जिससे अवैध खनन और पर्यावरणीय क्षरण को बढ़ावा मिला। इस असमानता को समाप्त करना समिति का मुख्य लक्ष्य था।

राज्यों से परामर्श और नीति-स्तर पर सहमति

विस्तृत चर्चा के दौरान यह सामने आया कि केवल राजस्थान में ही अरावली के लिए एक औपचारिक और स्पष्ट परिभाषा लागू थी, जो 2002 की समिति रिपोर्ट और 2006 से लागू नियमों पर आधारित थी।

अन्य राज्यों, दिल्ली, हरियाणा और गुजरात, ने भी राजस्थान मॉडल को अपनाने पर सहमति व्यक्त की, बशर्ते इसे और अधिक पारदर्शी, वैज्ञानिक और संरक्षण-केंद्रित बनाया जाए। इस सहमति ने एक राष्ट्रीय स्तर की समान नीति का मार्ग प्रशस्त किया।

अरावली पहाड़ियों की नई वैज्ञानिक परिचालन परिभाषा

समिति की सिफारिशों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की स्पष्ट परिभाषा को स्वीकार किया। इसके अनुसार:

स्थानीय राहत से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची कोई भी भू-आकृति अरावली पहाड़ी मानी जाएगी

पहाड़ी के साथ-साथ उसकी सहायक ढलानें और आधार क्षेत्र भी संरक्षण में शामिल होंगे

सबसे निचली कंटूर रेखा के भीतर आने वाला पूरा क्षेत्र खनन से मुक्त रहेगा

इस परिभाषा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल चोटी ही नहीं, बल्कि पूरी पारिस्थितिक इकाई सुरक्षित रहे।

अरावली रेंज की क्लस्टर-आधारित परिभाषा

नई नीति के तहत यदि दो या अधिक अरावली पहाड़ियां 500 मीटर की दूरी के भीतर स्थित हैं, तो उन्हें मिलाकर अरावली रेंज माना जाएगा।

इसका अर्थ यह है कि:

बीच की घाटियां

छोटी पहाड़ियां

सहायक ढलान

भी स्वतः संरक्षण के दायरे में आ जाएंगी। यह दृष्टिकोण पारिस्थितिक कनेक्टिविटी और वन्यजीव गलियारों की रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

खनन पर सख्त नियंत्रण और नई लीज पर अंतरिम रोक

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जब तक भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) द्वारा पूरी अरावली के लिए सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान (MPSM) तैयार नहीं किया जाता, तब तक:

कोई नई खनन लीज जारी नहीं होगी

मौजूदा खदानें भी केवल सख्त पर्यावरणीय शर्तों के तहत ही संचालित होंगी

यह निर्णय तत्काल पारिस्थितिक क्षति को रोकने के लिए एक निवारक कदम के रूप में देखा जा रहा है।

कोर और अछूते क्षेत्रों की पूर्ण सुरक्षा

नई नीति के तहत टाइगर रिजर्व, संरक्षित वन, पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र, आर्द्रभूमि और CAMPA वृक्षारोपण क्षेत्र पूरी तरह खनन-मुक्त रहेंगे।

यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि सबसे संवेदनशील और जैव विविधता से भरपूर क्षेत्र विकास के दबाव से सुरक्षित रहें।

अवैध खनन रोकने के लिए तकनीकी निगरानी तंत्र

अवैध खनन पर प्रभावी नियंत्रण के लिए ड्रोन, नाइट-विजन CCTV, ई-चालान प्रणाली, हाई-टेक वेइंग ब्रिज और जिला-स्तरीय टास्क फोर्स को अनिवार्य किया गया है।

यह तकनीकी निगरानी पारदर्शिता बढ़ाने और कानून के सख्त प्रवर्तन में सहायक होगी।

लैंडस्केप-स्तर पर संरक्षण की नई सोच

अरावली को एक सतत भूवैज्ञानिक रिज के रूप में देखने का निर्णय इस नीति की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। इससे पारिस्थितिक विखंडन रुकेगा और पूरे क्षेत्र की पर्यावरणीय अखंडता बनी रहेगी।

सरकार का स्पष्ट रुख और संदेश

पर्यावरण मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि अरावली की पारिस्थितिकी को लेकर फैलाए जा रहे भय निराधार हैं। वर्तमान में वनीकरण, ईएसजेड अधिसूचनाएं और सख्त निगरानी पहले से लागू हैं।

संरक्षण और विकास के बीच संतुलन

सुप्रीम कोर्ट द्वारा समर्थित यह नीति अरावली पहाड़ियों को केवल कानूनी सुरक्षा ही नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक और व्यावहारिक संरक्षण ढांचा प्रदान करती है। यह फैसला आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरणीय सुरक्षा और जिम्मेदार विकास का मजबूत आधार तैयार करता है।