भारत के पुल: कठिन भूगोल पर इंजीनियरिंग कौशल और विकास की जीत
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भारत के प्रमुख पुल दुर्गम भूगोल पर विजय का प्रतीक हैं, जो कनेक्टिविटी, व्यापार और क्षेत्रीय विकास को नई गति प्रदान करते हैं।
बोगीबील, सरायघाट और दीघा-सोनपुर जैसे पुल आधुनिक भारतीय इंजीनियरिंग और सामरिक सोच की मजबूत मिसाल हैं। पुलों ने दूरदराज़ समुदायों को मुख्यधारा से जोड़ा, यात्रा समय घटाया और सामाजिक-आर्थिक बदलाव को तेज किया।
भारत की संयोजकता को परिभाषित करने वाले पुल
नागपुर/ बलखाती नदियों, गहरी खाइयों और बेचैन समंदरों के ऊपर तने भारत के पुल इंजीनियरी में देश की महत्वाकांक्षाओं के मूक साक्षी हैं। ये सिर्फ शहरों और क्षेत्रों को ही नहीं, बल्कि व्यक्तियों, संस्कृतियों और अर्थव्यवस्थाओं को भी जोड़ते हैं। ये पुल अक्सर उन स्थानों को एक दूसरे से मिलाते हैं जिन्हें भूगोल ने लंबे समय से अलग-थलग कर रखा था। समूचे भारत में पुल जिस तरह रोजमर्रा की जिंदगी को संवारते हैं उस ओर हममें से ज्यादातर का ध्यान नहीं जाता। वे उन दूरियों को घटाते हैं जिन्हें तय करने में कई दिन लग जाते थे। वे दूरदराज के समुदायों तक पहुंच बनाते और प्रकृति के सबसे उग्र रूपों का सामना करते हैं। देश भर में फैले अनगिनत पुलों के जाल में कई प्रमुख पुल विशालता और भारतीय अवसंरचना की दृष्टि की मिसाल हैं। इनमें से हर पुल अपने में साहसिक डिजाइन तथा निर्मम मौसम और मुश्किल भूभागों पर विजय पाने के मानवीय संकल्प की कहानी समेटे है।,
भारत की संयोजकता को परिभाषित करने वाले पुल
अटल बिहारी वाजपेयी सेवरी-न्हावा शेवा अटल सेतु
अरब सागर के ऊपर अटल सेतु मुंबई महानगर के कैनवस पर कूची के बिंदास स्पर्श की तरह है। इसे मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक (एमटीएचएल) के नाम से भी जाना जाता है। यह भीड़भाड़ और समय के बंधनों से मुक्त क्षितिज की ओर मुंबई का सबसे बड़ा कदम है। इसे मुंबई के द्वीपीय शहर पर ट्रैफिक के भारी बोझ को घटाने के लिए विकसित किया गया है। आधुनिक निर्माण और सुरक्षा प्रणालियों के इस्तेमाल से बना यह पुल खाड़ी के आरपार ज्यादा तेज और सुरक्षित मार्ग प्रदान करता है। इससे दुर्घटना के जोखिम में गिरावट आने के साथ ही यात्रियों के रोजाना यात्रा के अनुभव में सुधार आता है। लेकिन इसका प्रभाव परिवहन से आगे भी है। एमटीएचएल मुंबई और इसके आसपास के क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने में भी सहायक है। यह व्यापार और उद्योग के लिए कनेक्टिविटी को बढ़ा कर स्थानीय अर्थव्यवस्था के विकास में भी योगदान कर रहा है। यह पुल समंदर के ऊपर 16.5 किलोमीटर और जमीन पर 5.5 किमी है। इस परियोजना के लिए 17843 करोड़ रुपए की लागत मंजूर की गई थी और यह भारत का सबसे लंबा समुद्री पुल है। कोविड 19 की वैश्विक महामारी से पैदा अभूतपूर्व चुनौतियों के बावजूद यह परियोजना पटरी पर रही और निर्धारित समय पर पूरी हुई।

चेनाब पुल
विश्व के सबसे ऊंचे मेहराबदार रेल सेतु, चेनाब पुल का निर्माण पूरा होने के साथ ही भारत का इंजीनियरी कौशल भी एक नई ऊंचाई को छू रहा है। इस परियोजना को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा। दुर्गम इलाके, हद से ज्यादा खराब मौसम और पर्वतों से गिरते पत्थरों ने निर्माण का काम बेहद कठिन बना दिया था। 4 लाखों लोग एफिल टॉवर को देखने के लिए पेरिस जाते हैं। लेकिन चेनाब पुल उससे भी 35 मीटर ऊंचा है। यह महत्वपूर्ण अवसंरचनात्मक संपत्ति होने के साथ ही उभरता पर्यटन स्थल भी है। चेनाब नदी के 359 मीटर ऊपर बना यह पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक (यूएसबीआरएल) का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस रेल मार्ग पर वंदे भारत ट्रेनों का परिचालन शुरू होने वाला है जिससे श्रीनगर और कटरा के बीच यात्रा का समय घट कर सिर्फ लगभग 3 घंटों का रह जाएगा। इस्पात की मेहराबों का 1315 मीटर लंबा यह ढांचा 260 किलोमीटर प्रति घंटा तक हवा के वेग को झेल सकता है और इसकी उम्र 120 साल होगी। कुल 1486 करोड़ रुपए की लागत से बना चेनाब रेल पुल भारत की महत्वाकांक्षा, तकनीकी श्रेष्ठता और बढ़ती अवसंरचनात्मक क्षमताओं का प्रतीक है।



नया पंबन पुल
रामेश्वरम को मुख्य भूमि से जोड़ने वाला नया बना पंबन पुल, भारत का पहला वर्टिकल लिफ्ट रेलवे समुद्री पुल है। यह दुनिया के नक्शे पर आधुनिक भारतीय अवसंरचना के एक खास प्रतीक के तौर पर उभरा है। 700 करोड़ रुपये से ज़्यादा की लागत से बने इस 2.07 किमी लंबे पुल में 72.5 मीटर का एक
वर्टिकल लिफ्ट सेक्शन है जो 17 मीटर तक ऊपर उठ सकता है, जिससे ट्रेन की आवाजाही रोके बिना जहाज़ सुरक्षित रूप से गुज़र सकते हैं। नए पंबन पुल के निर्माण में प्रमुख पर्यावरणीय और लॉजिस्टिकल चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इनमें तेज उठती समुद्री लहरें, तेज़ हवाएँ, चक्रवात और भूकंपीय जोखिम शामिल थे। साथ ही, सीमित ज्वार-भाटा के भीतर दूरस्थ स्थल तक भारी सामग्री को लेजाना भी मुश्किल था। अभिनव इंजीनियरिंग और उन्नत तकनीक के माध्यम से, 1,400 टन से अधिक का फैब्रिकेशन, लिफ्ट-स्पैन लॉन्च, 99 गर्डर्स, और समुद्र में व्यापक ट्रैक व विद्युतीकरण का काम किसी को चोट पहुंचाए बिना पूरा किया गया। इसे जंगरोधी, उच्च-प्रदर्शन वाली सुरक्षात्मक कोटिंग्स और जोड़ों को पूरी तरह वेल्ड करके तैयार किया गया है। यह पुल कम रखरखाव के साथ लंबे समय तक चलने वाला है। इसे भविष्य को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है, जिसमें दूसरी रेलवे लाइन के लिए जगह छोड़ी गई है। चुनौतीपूर्ण तटीय परिस्थितियों को देखते हुए, इस पर की गई एक विशेष पॉलीसिलोक्सेन परत इसको जंग से बचाती है, जो इसके लिए एक आवश्यक सुरक्षा उपाय है।


धोला-सादिया पुल
धोला-सादिया पुल, जिसे भूपेन हजारिका सेतु के नाम से भी जाना जाता है, यह असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह उत्तरी असम और पूर्वी अरुणाचल प्रदेश के बीच पहला पक्का सड़क संपर्क का साधन भी है। बीम ब्रिज के तौर पर बना यह पुल ब्रह्मपुत्र की मुख्य सहायक नदियों में से एक, लोहित नदी के ऊपर से गुज़रता है, जो तिनसुकिया ज़िले में धोला को उत्तर में सादिया से जोड़ता है। 9.15 किलोमीटर लंबा यह पुल 60-टन के मिलिट्री टैंकों का वज़न सहने के लिए बनाया गया है, जिसमें भारतीय सेना के अर्जुन और टी-72 मॉडल भी शामिल हैं। यह क्षमता इस संरचना में महत्वपूर्ण सामरिक महत्व जोड़ती है।

अंजी खड्ड पुल
अंजी खड्ड पुल अपनी खूबसूरती और बड़े आकार के साथ हिमालय के नज़ारे में चार चांद लगा देता है। यह भारत का पहला केबल-आधारित रेलवे पुल है और उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लाइन के कटरा-बनिहाल सेक्शन में एक अहम कड़ी है। जम्मू से लगभग 80 किलोमीटर दूर और बर्फ से ढकी चोटियों के बीच बना यह पुल अंजी नदी घाटी से 331 मीटर ऊपर है और 725 मीटर लंबा है। इसकी सबसे खास बात इसका उल्टा वाई -आकार का खंभा है जो अपनी नींव से 193 मीटर ऊपर उठता है, इसमें 96 केबलों का उपयोग किया गया है। 8,200 मीट्रिक टन से ज़्यादा संरचनागत स्टील पुल को मजबूत बनाता है, जिससे यह भूकंप को झेल पाता है। अंजी खड्ड पुल हिमालय की बहुत मुश्किल परिस्थितियों में बनाया गया था, यहाँ चूना पत्थर की चट्टानें और बड़े-बड़े चूना पत्थर के बोल्डर के साथ पहाड़ी ढलान का मलबा था। पहाड़ की पारिस्थितकी को बचाने के लिए, पूरे निर्माण के दौरान बड़े पैमाने पर ढलान से बचाने के उपाय किए गए। अपनी तकनिकी बारीकियों के अलावा, अंजी खड्ड पुल सिर्फ़ 11 महीनों में पूरा किया गया जो लगन और समझ का प्रतीक बन गया है। यह कश्मीर घाटी को शेष भारत से जोड़ने वाले बड़े रेल संपर्क के तौर पर, यात्रा को आसान बनाएगा, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा और नए आर्थिक अवसर खोलेगा।

भारत के पुल सिर्फ़ अवसंरचना से कहीं ज़्यादा हैं; वे इरादों को बयान करते हैं, जो एक ऐसे बड़े देश को जोड़ते हैं जो अपनी विविधता के लिए जाना जाता है। वे पर्वतों, मॉनसून के बादलों और इस उपमहाद्वीप की पानी की सबसे अशांत लहरों से गुज़रते हैं। इस विशाल इलाके के हर कोने में, अलग-अलग पुल भारत की लगन और दृढ़ संकल्प को दिखाते रहते हैं। असम में, शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र नदी पर बना बोगीबील पुल और नया सरायघाट पुल, कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए सड़क और रेल दोनों की सुविधा देते हैं। इसी तरह, बिहार में दीघा-सोनपुर पुल अपने मज़बूत रेल-और-रोड डिज़ाइन से गंगा नदी के पार आवाजाही को बेहतर बनाता है। उनकी छाया में नवप्रवर्तन, लगन और उन मुश्किल जगहों की कहानियाँ छिपी हैं जिन्हें जीतने की उन्होंने हिम्मत की। वे अर्थव्यवस्था को नया आकार देते हैं, वे नए नक्शे बनाते हैं, और लोगों के चलने, रहने और सपने देखने के तरीके को बदलते हैं। हर नया पुल सिर्फ इंजीनियरिंग प्रगति को ही नहीं दिखाता, बल्कि क्षेत्र, समय और इतिहास की सीमाओं से आगे बढ़ने की देश की इच्छा को भी दिखाता है। जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, उसके ये पुल, आगे बढ़ते हुए, अपना रास्ता बनाते हुए, एक गतिशील देश की सबसे स्पष्ट अभिव्यक्तियों में से एक के रूप में दिखाई देंगे।
संदर्भ- साभार- pib