राष्ट्रपति मुर्मु ने मानवाधिकार दिवस समारोह में गरिमा, समानता और समावेशी विकास पर जोर दिया
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राष्ट्रपति मुर्मु ने मानवाधिकार दिवस पर कहा कि समावेशी विकास और गरिमा आधारित समाज के लिए हर नागरिक की सक्रिय भागीदारी अनिवार्य है।
एनएचआरसी और अन्य संस्थानों द्वारा महिलाओं, बच्चों, वंचित समुदायों और कैदियों से जुड़े मानवाधिकार मुद्दों पर बढ़ती पहल को राष्ट्रपति ने सराहा।
चार श्रम संहिताओं, बुनियादी सेवाओं के अधिकार-आधारित विस्तार और अंत्योदय दर्शन को मानवाधिकारों के व्यावहारिक रूप में बदलने वाली सरकारी पहल बताया गया।
New Delhi/ राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने 10 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के मानवाधिकार दिवस समारोह में भाग लिया और मानवाधिकारों को सभ्य समाज की आधारशिला बताते हुए सभी नागरिकों से इनके संरक्षण में सक्रिय भागीदारी का आह्वान किया।
अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि मानवाधिकार दिवस यह याद दिलाता है कि गरिमा, समानता और स्वतंत्रता हर मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है। उन्होंने कहा कि 77 वर्ष पूर्व अपनाई गई मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा ने विश्व को यह संदेश दिया कि हर व्यक्ति समान अधिकारों के साथ जन्म लेता है। भारत ने इस वैश्विक ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने मानव गरिमा पर आधारित विश्व की परिकल्पना की थी।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत का अंत्योदय दर्शन वंचितों को प्राथमिकता देता है और 2047 तक विकसित भारत के निर्माण में यह दृष्टिकोण केंद्र में होना चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि विकास तभी सार्थक होगा जब राष्ट्र के हर नागरिक को समान अवसर और सम्मान प्राप्त होगा।
उन्होंने कहा कि मानवाधिकार सामाजिक लोकतंत्र को मजबूत करते हैं, जिनमें भयमुक्त जीवन, शिक्षा का अधिकार, शोषण से मुक्ति और गरिमापूर्ण वृद्धावस्था जैसे अधिकार शामिल हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि “न्याय के बिना शांति नहीं और शांति के बिना न्याय नहीं”-भारत हमेशा इस सिद्धांत का पालन करता आया है।
उन्होंने एनएचआरसी, राज्य मानवाधिकार आयोगों और न्यायपालिका की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि इन संस्थानों ने संवैधानिक मूल्यों को सुरक्षित रखने में सतर्क प्रहरी का कार्य किया है। उन्होंने बताया कि एनएचआरसी ने पिछले वर्षों में महिला, बाल, अनुसूचित जाति-जनजाति समुदायों और कैदियों से जुड़े कई मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लिया है।
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण मानवाधिकारों का महत्वपूर्ण स्तंभ है। उन्होंने एनएचआरसी द्वारा सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े सम्मेलन आयोजित करने की पहल को महत्वपूर्ण बताया।
उन्होंने यह भी कहा कि पिछले एक दशक में सरकार ने अधिकार आधारित शासन मॉडल को आगे बढ़ाते हुए स्वच्छ जल, बिजली, स्वास्थ्य सेवाएं, बैंकिंग सुविधा, शिक्षा और स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाओं को आम नागरिकों तक पहुंचाया है, जिससे उनकी गरिमा और जीवन स्तर में सुधार हुआ है।
राष्ट्रपति ने हाल ही में लागू की गई चार श्रम संहिताओं-वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य-को भविष्य के लिए तैयार कार्यबल निर्माण का एक बड़ा सुधार बताया।
अपने संबोधन के अंत में उन्होंने कहा कि मानवाधिकार संरक्षण केवल सरकार या संस्थानों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर नागरिक का नैतिक कर्तव्य है कि वह दूसरों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा करे और एक दयालु, जिम्मेदार समाज के निर्माण में योगदान दे।