वेसाक संयुक्त राष्ट्र दिवस 2025: हो ची मिन्ह सिटी में भारत-वियतनाम सांस्कृतिक संबंधों का उत्सव
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किरेन रिजिजू का वैश्विक बौद्ध समारोह में संबोधन।
वेसाक दिवस 2025: बुद्ध की शिक्षाओं की वैश्विक प्रासंगिकता।
भारत-वियतनाम सांस्कृतिक सहयोग और बुद्ध अवशेष प्रदर्शनी।
वियतनाम के हो ची मिन्ह सिटी में स्थित वियतनाम बौद्ध अकादमी में आयोजित संयुक्त राष्ट्र वेसाक दिवस 2025 समारोह में भारत के केंद्रीय संसदीय कार्य एवं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने विश्व भर से आए गणमान्य व्यक्तियों को संबोधित किया। उन्होंने इस पावन अवसर पर उपस्थित अंतरराष्ट्रीय जनसमुदाय को भारत की ओर से राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित कीं।
श्री रिजिजू ने अपने संबोधन में भगवान बुद्ध की शिक्षाओं की समकालीन वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि स्थिरता, शांति और मानवीय मर्यादा के लिए भगवान बुद्ध के विचार आज की दुनिया के लिए एक प्रकाशपुंज हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक संकटों और संघर्षों से जूझती दुनिया को आज सबसे अधिक आवश्यकता है बुद्ध की करुणा, सहिष्णुता और अहिंसा के मार्गदर्शन की।
इस भव्य समारोह में वियतनाम के राष्ट्रपति महामहिम लुओंग कुओंग और श्रीलंका के राष्ट्रपति महामहिम अनुरा कुमारा दिसानायका सहित कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों और आध्यात्मिक गुरुओं ने भाग लिया। वियतनाम बौद्ध संघ के सर्वोच्च संरक्षक परम आदरणीय थिच त्रि कुआंग और यूएन वेसाक दिवस की अंतरराष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रो. डॉ. प्रा ब्रह्मपंडित सहित कई प्रसिद्ध बौद्ध हस्तियां भी समारोह में मौजूद रहीं।
वेसाक दिवस 2025 का थीम है: "मानवीय मर्यादा के लिए एकजुटता और सहिष्णुता; विश्व शांति और सतत विकास के लिए बौद्ध प्रज्ञा". यह विषय वैश्विक स्तर पर एकजुटता, सहिष्णुता और शांति का संदेश देता है, जो मौजूदा समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
इस अवसर पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया, भारतीय राष्ट्रीय संग्रहालय, और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) के सहयोग से भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को वियतनाम में प्रदर्शित किया जा रहा है। इन अवशेषों को वर्तमान में हो ची मिन्ह सिटी के थान टैम पैगोडा में रखा गया है और इन्हें आगे 21 मई, 2025 तक ताई निन्ह, हनोई और हा नाम ले जाया जाएगा।
इस ऐतिहासिक पहल के माध्यम से भारत ने एक बार फिर वैश्विक स्तर पर बौद्धिक और आध्यात्मिक नेतृत्व की भूमिका को सशक्त किया है, जिससे वैश्विक भाईचारा, शांति और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बढ़ावा मिलेगा।