काशी तमिल संगमम् 4.0: तमिल शिक्षकों का श्रीराम मंदिर दर्शन
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काशी तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत तमिलनाडु के शिक्षकों ने श्रीराम मंदिर, हनुमानगढ़ी और राम की पौड़ी में आध्यात्मिक दर्शन कर सांस्कृतिक एकता का संदेश दिया।
मंदिर के स्थापत्य में महाबलीपुरम की कला और रामेश्वरम की मिट्टी के उपयोग को शिक्षकों ने उत्तर–दक्षिण भारतीय सौहार्द का जीवंत प्रतीक बताया।
शिक्षक श्रवण ने काशी, प्रयागराज और अयोध्या यात्रा को जीवन की सबसे अविस्मरणीय आध्यात्मिक अनुभूति बताते हुए इसे भारतीय सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने वाला अनुभव कहा।
Ayodhya/ वाराणसी–तमिलनाडु सांस्कृतिक समन्वय के अद्भुत उत्सव काशी तमिल संगमम् 4.0 के तहत तमिलनाडु से आए शिक्षकों के दल ने शनिवार प्रातः 8 बजे श्रीराम जन्मभूमि परिसर पहुँचकर प्रथम दर्शन किए। जैसे ही शिक्षक रामलला के पावन धाम में पहुँचे, पूरा परिसर “जय श्री राम” के जयघोष से गूंज उठा।
शिक्षकों ने अत्यंत श्रद्धा के साथ भगवान श्रीरामलला के दिव्य स्वरूप का दर्शन किया और राम मंदिर की भव्यता देखकर अभिभूत हो उठे। उन्होंने गर्भगृह, विस्तृत प्रांगण और वैदिक स्थापत्य को अद्भुत एवं अलौकिक बताते हुए कहा कि मंदिर में प्रयुक्त पारंपरिक शिल्पकला भारत की सांस्कृतिक गौरवगाथा का प्रतीक है।
दर्शन उपरांत शिक्षकों का दल हनुमानगढ़ी पहुँचा, जहाँ सभी ने बजरंगबली का आशीर्वाद प्राप्त कर भक्तिमय वातावरण का आनंद लिया। इसके बाद वे राम की पौड़ी पहुँचे और पवित्र सरयू तट पर जल का स्पर्श कर आध्यात्मिक शांति का अनुभव किया।
शिक्षक दल के गणित प्रशिक्षक श्रवण के अनुसार यह यात्रा उनके जीवन की सबसे अविस्मरणीय स्मृतियों में शामिल हो गई। उन्होंने कहा कि काशी विश्वनाथ धाम की भव्यता, प्रयागराज के त्रिवेणी संगम का दिव्य दृश्य और अयोध्या के राम मंदिर का ऐतिहासिक महत्व उन्हें गहराई से स्पर्श कर गया। रामलला के दर्शन के दौरान भावुक हुए श्रवण ने बताया कि मंदिर का स्थापत्य उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक एकता को एक सूत्र में पिरोता है। मंदिर में पत्थरों की नक्काशी, महाबलीपुरम की कलात्मक झलक और रामेश्वरम की मिट्टी का उपयोग यह प्रमाणित करता है कि श्रीराम सम्पूर्ण भारत की आस्था के केंद्र हैं।