स्वच्छ भारत मिशन-शहरी में नारियल कचरा बना संपदा, हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
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कोकोपीट और कॉयर उद्योग के विस्तार से भारत वैश्विक बाजार में निर्यात और विदेशी मुद्रा अर्जन में अग्रणी बन रहा है।
सरकारी सब्सिडी और शहरी नवाचार ने नारियल अपशिष्ट प्रबंधन को लाभकारी और टिकाऊ मॉडल में बदल दिया है।
Delhi/ एक समय शहरी उपभोग का अनचाहा परिणाम माने जाने वाला कचरा आज भारत में आर्थिक अवसर और पर्यावरणीय समाधान में बदल चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U) के आह्वान पर अमल करते हुए, आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के नेतृत्व में कचरा प्रबंधन की दिशा और परिभाषा दोनों बदली हैं। विशेष रूप से तटीय और पर्यटन शहरों में नारियल का कचरा, जो कभी लैंडफिल और प्रदूषण की बड़ी समस्या था, अब चक्रीय अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बन गया है।
समुद्र तटों और धार्मिक स्थलों पर नारियल पानी की बढ़ती खपत के कारण नारियल के छिलके शहरी गीले कचरे का 3-5 प्रतिशत हिस्सा बनते हैं, जो तटीय शहरों में 6-8 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले लगभग 1.6 लाख टन नगरपालिका कचरे के संदर्भ में यह मात्रा अत्यंत महत्वपूर्ण है। अब इस ‘हरित अपशिष्ट’ को वैज्ञानिक ढंग से अलग कर कोकोपीट, जैविक खाद, नारियल रेशा और रस्सियों जैसे मूल्यवान उत्पादों में बदला जा रहा है।
कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल जैसे अग्रणी नारियल उत्पादक राज्यों में यह परिवर्तन सबसे स्पष्ट दिखाई देता है। बेंगलुरु, मैसूर और मंगलुरु में प्रतिदिन 150–300 मीट्रिक टन नारियल कचरे का प्रसंस्करण हो रहा है। मैसूर और मदुरै जैसे शहरों ने नारियल कचरे का 100 प्रतिशत पुनर्चक्रण कर उदाहरण प्रस्तुत किया है। ओडिशा के पुरी, उत्तर प्रदेश के वाराणसी और आंध्र प्रदेश के तिरुपति जैसे धार्मिक नगरों में मंदिरों से निकलने वाले नारियल कचरे के लिए विशेष सामग्री पुनर्प्राप्ति केंद्र स्थापित किए गए हैं।
भारत का नारियल आधारित उद्योग अब वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है। वर्ष 2023-24 और 2024-25 में देश का कुल नारियल उत्पादन 21,000 मिलियन यूनिट से अधिक रहा। वैश्विक कॉयर बाजार का आकार 2025 में लगभग 1.45 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंका गया है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से अधिक है। कोकोपीट की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय मांग के कारण निर्यात में 10-15 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हो रही है, जहां चीन और अमेरिका प्रमुख खरीदार हैं।
सरकारी योजनाओं ने इस बदलाव को आर्थिक मजबूती प्रदान की है। SBM-U 2.0 के तहत कचरा प्रसंस्करण संयंत्रों के लिए 25–50 प्रतिशत केंद्रीय वित्तीय सहायता दी जा रही है। कॉयर उद्यमी योजना के अंतर्गत सूक्ष्म और लघु उद्यमों को 40 प्रतिशत तक सब्सिडी मिल रही है। गोबर्धन योजना के तहत 500 नए कचरा-से-धन संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं।
इस क्षेत्र में लगभग 75 लाख लोगों को रोजगार मिला है, जिनमें 80 प्रतिशत महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से कार्यरत हैं। इंदौर, चेन्नई, भुवनेश्वर, पटना और केरल के कई शहरों में नारियल कचरे से लाखों रुपये का मासिक राजस्व उत्पन्न हो रहा है। स्वच्छ भारत मिशन-शहरी के तहत भारत यह सिद्ध कर रहा है कि सही नीति, तकनीक और जनभागीदारी से कचरा भी हरित समृद्धि का आधार बन सकता है।