कोयला मंत्रालय ने अन्वेषण कार्यक्रमों और भूवैज्ञानिक रिपोर्टों के लिए नई सरल कार्यप्रणाली लागू की
ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |
कोयला मंत्रालय ने अन्वेषण और भूवैज्ञानिक रिपोर्टों की नई सरल प्रक्रिया लागू की। तीन महीने की बचत, निजी क्षेत्र की भागीदारी और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।
नई दिल्ली / देश की तेजी से बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कोयला और लिग्नाइट संसाधनों का आधुनिक, तेज़ और वैज्ञानिक अन्वेषण अनिवार्य होता जा रहा है। इसी दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए कोयला मंत्रालय ने “अन्वेषण कार्यक्रमों और भूवैज्ञानिक रिपोर्टों (GRs)” के अनुमोदन के लिए एक सरल, पारदर्शी और समय-बचत करने वाली नई कार्यप्रणाली लागू की है। यह घोषणा 1 दिसंबर 2025 को पीआईबी दिल्ली द्वारा की गई।
मंत्रालय का उद्देश्य ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने, निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने और अन्वेषण प्रक्रिया को अधिक कुशल बनाने का है। पहले लागू अनुमोदन प्रणाली में कई चरणों और समिति की स्वीकृति की आवश्यकता होती थी, जिससे अन्वेषण परियोजनाओं में 3 से 6 महीने तक की देरी हो जाती थी। अब नई प्रणाली के तहत QCI-NABET और अन्य मान्यता प्राप्त प्री-क्वालिफाइड एजेंसियों द्वारा तैयार अन्वेषण कार्यक्रमों और GRs को सीधे अनुमोदित किया जा सकेगा, जिससे प्रक्रिया में कम से कम 3 महीने की बचत सुनिश्चित होगी।
यह सुधार जनवरी 2022 में गठित समिति की अनिवार्य स्वीकृति को समाप्त करता है, जिससे व्यापार सुगमता (Ease of Doing Business) को बढ़ावा मिलेगा। कोयला मंत्रालय द्वारा प्रकाशित नई SOP इसकी आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है।
सरकार ने हाल के वर्षों में निजी क्षेत्र को अन्वेषण इकोसिस्टम में अधिक सक्रिय बनाने की दिशा में कई सुधार लागू किए हैं। मान्यता प्राप्त निजी पूर्वेक्षण संस्थाओं की विशेषज्ञता का लाभ लेते हुए, मंत्रालय ने तकनीकी नवाचार, डेटा-आधारित अन्वेषण और उच्च मानकों की पारदर्शिता को प्राथमिकता दी है। इससे न केवल कोयला ब्लॉक का समय पर विकास संभव होगा, बल्कि देश के ऊर्जा तंत्र को भी मजबूती मिलेगी।
नई प्रक्रिया के बाद कोयला ब्लॉकों के शीघ्र संचालन, निवेश में तेजी, अनुमोदन समय में कमी और ऊर्जा संसाधनों के सतत उपयोग को नया आयाम मिलेगा। सरकार का कहना है कि यह सुधार आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत 2047 की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि इससे ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत आधार मिलेगा और अन्वेषण के क्षेत्र में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी।