राज्यसभा 2026 से पहले दिग्विजय सिंह के बयान से कांग्रेस में बढ़ी सियासी हलचल
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दिग्विजय सिंह के भाजपा-आरएसएस पर बयान को राज्यसभा टिकट की रणनीति से जोड़कर कांग्रेस के अंदर दबाव की राजनीति के रूप में देखा जा रहा है।
भाजपा नेताओं की खुली सराहना और ऑफर ने कांग्रेस नेतृत्व के सामने निष्ठा और अनुशासन को लेकर नई चुनौती खड़ी कर दी है।
Delhi/ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का हालिया राजनीतिक व्यवहार और उनके बयान एक बार फिर सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गए हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के साथ जमीन पर बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर साझा कर भाजपा और आरएसएस की संगठनात्मक शक्ति की सराहना करना, कांग्रेस के भीतर असहजता पैदा कर रहा है। इसे महज एक भावनात्मक पोस्ट नहीं बल्कि सोची-समझी राजनीतिक रणनीति माना जा रहा है।
दरअसल, दिग्विजय सिंह का राज्यसभा कार्यकाल 9 अप्रैल 2026 को समाप्त हो रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि वे खुद को चर्चा के केंद्र में बनाए रखना चाहते हैं ताकि पार्टी नेतृत्व पर दोबारा राज्यसभा भेजने का दबाव बनाया जा सके। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि इस बार भी पार्टी अधिकतम एक ही राज्यसभा सीट जीतने की स्थिति में होगी, जबकि दावेदारों की संख्या कहीं अधिक है।
राज्यसभा को लेकर कांग्रेस में पहले भी बड़ा सियासी भूचाल आ चुका है। वर्ष 2020 में राज्यसभा टिकट विवाद के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए थे, जिसके परिणामस्वरूप कमलनाथ सरकार गिर गई थी। इस बार भी दिग्विजय सिंह के अलावा कमलनाथ, जीतू पटवारी, मीनाक्षी नटराजन, अरुण यादव और कमलेश्वर पटेल जैसे दिग्गज कतार में हैं।
दिग्विजय के बयान के बाद भाजपा ने मौके को भुनाने में देर नहीं लगाई। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उन्हें भाजपा में शामिल होने का सार्वजनिक न्योता दिया, जबकि मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने उनके बयान को “साहसिक सच” करार दिया। हालांकि, दिग्विजय सिंह ने साफ किया कि वे संघ और भाजपा के कट्टर विरोधी हैं और रहेंगे।
कांग्रेस के भीतर एक वर्ग इस पूरे घटनाक्रम को वरिष्ठ नेताओं की लगातार हो रही उपेक्षा से जोड़कर देख रहा है। प्रदेश में फैसलों की कमान युवा नेतृत्व के हाथों में सिमटने से असंतोष गहराता दिख रहा है। यदि यह असंतुलन बढ़ा, तो कांग्रेस को भविष्य में नए गुटों और अंदरूनी टकराव का सामना करना पड़ सकता है।