पीएम मोदी ने राज्यसभा अध्यक्ष के रूप में उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन का स्वागत किया, सेवा-भावना और नेतृत्व की सराहना
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राज्यसभा में स्वागत संबोधन: प्रधानमंत्री मोदी ने उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन की नेतृत्व यात्रा की सराहना
प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यसभा में पहली बार अध्यक्षता करने पर उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन का स्वागत किया, लोकतांत्रिक गरिमा और सार्थक संवाद को मजबूत करने का संकल्प जताया।
पीएम ने राधाकृष्णन के सामाजिक सेवा-केंद्रित जीवन, राज्यपाल कार्यकाल, tribal समुदायों से जुड़ाव और संगठन क्षमता को राष्ट्रीय प्रेरणा बताया।
Delhi/ राज्यसभा के शीतकालीन सत्र के ऐतिहासिक क्षण में आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार राज्यसभा की अध्यक्षता करने पर उपराष्ट्रपति व सभापति श्री सी.पी. राधाकृष्णन का स्वागत किया। प्रधानमंत्री ने इस दिन को सदन के सभी सदस्यों के लिए गौरवपूर्ण बताते हुए कहा कि सभापति के रूप में श्री राधाकृष्णन का नेतृत्व राज्यसभा में स्वस्थ लोकतांत्रिक संवाद और सार्थक विमर्श को और सुदृढ़ करेगा। उन्होंने भरोसा जताया कि सभी माननीय सदस्य सदन की गरिमा को बनाए रखने और लोकतांत्रिक मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए पूरी ईमानदारी से कार्य करेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि किसान परिवार से आने वाले और जीवन को समाज सेवा को समर्पित करने वाले सभापति राधाकृष्णन का सार्वजनिक जीवन सेवा-भावना की मिसाल रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राजनीति उनके जीवन का मात्र एक पहलू रहा, जबकि मानव सेवा हमेशा उनकी मूल पहचान के रूप में रही। उन्होंने कॉयर बोर्ड को ऐतिहासिक रूप से कार्यकुशल संस्था में बदलने में राधाकृष्णन की भूमिका की भी प्रशंसा की।
प्रधानमंत्री ने झारखंड, महाराष्ट्र, तेलंगाना और पुडुचेरी में राज्यपाल एवं उपराज्यपाल के रूप में उनकी समर्पित सेवाओं और झारखंड के आदिवासी समुदायों के साथ गहरे जुड़ाव को याद किया। उन्होंने कहा कि सभापति अक्सर दूर-दराज के गांवों में भ्रमण करते थे और लोगों की जरूरतों को समझने के लिए छोटे-छोटे समुदायों में रात बिताते थे, जो उनकी सार्वजनिक प्रतिबद्धता को अनूठा बनाता है।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने दो घटनाओं का उल्लेख किया, जिन्होंने सभापति के आध्यात्मिक विश्वास और समाज सेवा के संकल्प को और मजबूत किया। पहली घटना अविनाशी मंदिर के तालाब में बचपन में डूबते-डूबते बचने की थी और दूसरी कोयंबटूर बम विस्फोट की, जिसमें वे बाल-बाल बचे थे। प्रधानमंत्री के अनुसार, इन दोनों घटनाओं को सभापति ने ईश्वरीय संकेत के रूप में ग्रहण किया और समाज के प्रति सेवा भावना को और अधिक गहन बना दिया।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि सभापति ने पहली बार काशी यात्रा के दौरान मां गंगा के दर्शन के बाद मांसाहार त्यागने का संकल्प लिया, जो उनकी आध्यात्मिक चेतना और आत्मनियम को दर्शाता है। उन्होंने आपातकाल के दौर में लोकतंत्र बचाने के आंदोलन में भागीदारी और साहसपूर्ण नेतृत्व का भी स्मरण किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि संगठन क्षमता, सामूहिक नेतृत्व, सकारात्मक सोच और नए विचारों को प्रोत्साहित करने की क्षमता सभापति के व्यक्तित्व की बड़ी विशेषताएं हैं। उन्होंने कोयंबटूर से सांसद के रूप में उनके योगदान और जनता के मुद्दों को सदन में पूरी मजबूती से उठाने के प्रयासों की भी सराहना की।
प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि एक सांसद, राज्यसभा के सभापति और अब उपराष्ट्रपति के रूप में उनका व्यापक अनुभव सदन के सुचारू संचालन, राष्ट्रहित में चर्चाओं और लोकतांत्रिक संस्थानों की मजबूती के लिए मार्गदर्शक शक्ति सिद्ध होगा।