लड़कियों का खतना POCSO का उल्लंघन? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि बच्चियों पर होने वाला खतना क्या POCSO ऐक्ट और बच्चों के मूल अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। दाऊदी बोहरा समुदाय में प्रचलित FGM को याचिका में गैर-इस्लामी और मानसिक-शारीरिक हानि पहुंचाने वाली प्रथा बताया गया।
नई दिल्ली / महिलाओं के खतना (Female Genital Mutilation– FGM) की प्रथा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर गंभीर रुख अपनाया है। अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि यह मुद्दा बच्चों के अधिकारों, शारीरिक अखंडता और POCSO कानून के दायरे से जुड़ा है, इसलिए इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। याचिका ‘चेतना वेलफेयर सोसाइटी’ द्वारा दायर की गई है जिसमें कहा गया है कि दाऊदी बोहरा समुदाय में प्रचलित यह परंपरा न तो इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है और न ही किसी भी आधुनिक मानवाधिकार सिद्धांत से मेल खाती है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि कम उम्र की बच्चियों पर उनकी सहमति के बिना किया जाने वाला खतना उनके शरीर पर स्थायी, मानसिक और शारीरिक असर डालता है। याचिका में यह भी कहा गया है कि यह प्रथा बच्चों के प्रति क्रूरता की श्रेणी में आती है और POCSO ऐक्ट के सेक्शन 3 तथा 5 के अंतर्गत दंडनीय अपराध के रूप में देखी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए केंद्र सरकार से पूछा है कि वह इस मामले में अपना आधिकारिक रुख स्पष्ट करे। अदालत ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार किसी भी बच्चे की शारीरिक सुरक्षा और मानवाधिकार से ऊपर नहीं हो सकता। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि यदि यह साबित होता है कि खतना स्वास्थ्य, मानसिक स्थिरता और शरीर की अखंडता को नुकसान पहुंचाता है, तो इसे प्रतिबंधित करने पर विचार किया जा सकता है।
सरकार से जवाब मांगने के साथ, कोर्ट ने यह भी माना कि भारत में बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा कोई भी मसला केवल धार्मिक परंपरा का मामला नहीं हो सकता, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 का भी सवाल है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा सुनिश्चित करता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह केस भारत में FGM पर पहली बड़ी संवैधानिक चुनौती है। दुनिया के कई देशों में FGM को अपराध घोषित किया जा चुका है, और भारत में भी इसके खिलाफ आंदोलन बढ़ रहा है। यदि केंद्र सरकार FGM के खिलाफ मजबूत रुख अपनाती है, तो आने वाले समय में इस प्रथा पर संपूर्ण प्रतिबंध लगने की संभावना बढ़ सकती है।