उपराष्ट्रपति ने शिवगिरि तीर्थयात्रा शुरू की, नारायण गुरु के दर्शन को बताया मार्गदर्शक
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उपराष्ट्रपति ने 93वीं शिवगिरि तीर्थयात्रा का शुभारंभ कर इसे आध्यात्मिकता और सामाजिक जागृति का संगम बताया।
श्री नारायण गुरु के “एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर” संदेश को समानता और मानव गरिमा का आधार बताया।
केंद्र सरकार की प्रसाद योजना और बेहतर कनेक्टिविटी से तीर्थ अवसंरचना सुदृढ़ होने की बात कही।
Kerla/ उपराष्ट्रपति श्री सी. पी. राधाकृष्णन ने आज केरल के वर्कला स्थित शिवगिरि मठ में 93वीं शिवगिरि तीर्थयात्रा का विधिवत शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने शिवगिरि को केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि श्री नारायण गुरु द्वारा परिकल्पित सामाजिक चेतना, समानता और मानव गरिमा की जीवंत यात्रा बताया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिवगिरि आध्यात्मिक साधना और सामाजिक उत्तरदायित्व के संतुलित समन्वय का प्रतीक है, जहां आस्था और तर्क एक-दूसरे के पूरक बनते हैं।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि शिवगिरि तीर्थयात्रा को मात्र एक परंपरा नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वच्छता, संगठन, श्रम और आत्मसम्मान के माध्यम से समाज को जागृत करने वाले आंदोलन के रूप में देखा जाना चाहिए। श्री नारायण गुरु द्वारा उठाए गए उस ऐतिहासिक प्रश्न का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि “एक मनुष्य को दूसरे से कमतर क्यों समझा जाए?” इस प्रश्न ने समाज की जड़ों तक फैले भेदभाव को चुनौती दी। गुरु का संदेश “एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर मानवता के लिए” आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि श्री नारायण गुरु की क्रांति शांत, करुणामय और स्थायी थी, जो समानता, गरिमा और मानवता पर आधारित थी। उन्होंने गुरु की बौद्धिक गहराई को रेखांकित करते हुए कहा कि उन्होंने आस्था को तर्क से अलग नहीं किया, अंधविश्वास को अस्वीकार किया और विवेकपूर्ण जिज्ञासा को प्रोत्साहित किया। यही संतुलन उन्हें भविष्य के लिए भी प्रासंगिक मार्गदर्शक बनाता है।
भारत की सभ्यतागत परंपरा पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय आध्यात्मिकता में प्रेम को पूजा का सर्वोच्च रूप माना गया है। श्री नारायण गुरु ने समाज सेवा को कर्मकांड से ऊपर रखकर इस दर्शन को व्यवहार में उतारा। उन्होंने आदि शंकराचार्य और श्री नारायण गुरु को केरल का विश्व को दिया गया अमूल्य योगदान बताया।
केंद्र सरकार की पहलों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि प्रसाद (PRASAD) योजना, वंदे भारत ट्रेनों और आध्यात्मिक परिपथों के विकास से तीर्थयात्रा अवसंरचना को मजबूत किया जा रहा है। अंत में उन्होंने युवाओं से गुरु की शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर समानता, बंधुत्व और न्याय के संवैधानिक मूल्यों को अपनाने का आह्वान किया।