REPM योजना से भारत को मिलेगी तकनीकी आत्मनिर्भरता
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₹7,280 करोड़ की REPM योजना से भारत में दुर्लभ मृदा चुंबकों की 6,000 MTPA स्वदेशी उत्पादन क्षमता विकसित की जाएगी।
इलेक्ट्रिक वाहन, नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को यह पहल निर्णायक मजबूती देगी।
चीन पर आयात निर्भरता कम कर भारत को वैश्विक उन्नत-सामग्री मूल्य श्रृंखला में मजबूत स्थान दिलाने का लक्ष्य।
दिल्ली/ भारत ने उन्नत प्रौद्योगिकी और रणनीतिक विनिर्माण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए दुर्लभ मृदा स्थायी चुंबक (Rare Earth Permanent Magnet – REPM) निर्माण के लिए एक व्यापक और दीर्घकालिक योजना को मंजूरी दी है। केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत ₹7,280 करोड़ की यह महत्वाकांक्षी पहल भारत को उच्च-प्रदर्शन चुंबकीय सामग्री के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक निर्णायक मोड़ मानी जा रही है। यह योजना न केवल देश की औद्योगिक क्षमताओं को नई ऊर्जा देगी, बल्कि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स, एयरोस्पेस और रक्षा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को भी सुदृढ़ करेगी।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, इस योजना के अंतर्गत भारत में पहली बार दुर्लभ-मृदा ऑक्साइड से लेकर तैयार स्थायी चुंबक तक की संपूर्ण मूल्य श्रृंखला को समाहित करते हुए एक एकीकृत घरेलू विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित किया जाएगा। इसका लक्ष्य प्रति वर्ष 6,000 मीट्रिक टन (MTPA) की स्वदेशी REPM निर्माण क्षमता विकसित करना है, जिससे आयात पर निर्भरता कम होगी और आपूर्ति श्रृंखला की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
रणनीतिक महत्व और पृष्ठभूमि
दुर्लभ मृदा स्थायी चुंबक आधुनिक तकनीकों के लिए अत्यंत आवश्यक घटक हैं। इनका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहन मोटरों, पवन टरबाइन जनरेटरों, उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स, सटीक सेंसर, चिकित्सा उपकरणों, एयरोस्पेस और रक्षा प्रणालियों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इन चुंबकों की विशेषता यह है कि ये छोटे आकार में भी अत्यधिक चुंबकीय शक्ति और स्थिरता प्रदान करते हैं, जिससे उच्च दक्षता और ऊर्जा बचत संभव होती है।
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर REPM की आपूर्ति श्रृंखला कुछ गिने-चुने देशों तक सीमित है, जिसमें चीन का प्रभुत्व सबसे अधिक है। भारत की बात करें तो आधिकारिक व्यापार आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 से 2024-25 के बीच देश की स्थायी चुंबक आवश्यकताओं का 60 से 80 प्रतिशत तक आयात चीन से किया गया। मात्रा के आधार पर यह निर्भरता 85 से 90 प्रतिशत के बीच रही। इस स्थिति ने भारत की औद्योगिक और रणनीतिक आत्मनिर्भरता को लेकर गंभीर चिंताएँ पैदा कीं, जिन्हें दूर करने के लिए इस योजना को आवश्यक माना गया।
योजना की प्रमुख विशेषताएँ
सरकार द्वारा स्वीकृत REPM योजना को दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ तैयार किया गया है। इसके अंतर्गत:
कुल ₹6,450 करोड़ की राशि पांच वर्षों में बिक्री-आधारित प्रोत्साहन के रूप में दी जाएगी, जिससे उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा।
₹750 करोड़ की पूंजीगत सब्सिडी उन्नत और एकीकृत विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के लिए प्रदान की जाएगी।
अधिकतम पांच लाभार्थियों का चयन वैश्विक प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा।
प्रत्येक लाभार्थी को 1,200 MTPA तक की उत्पादन क्षमता स्थापित करने की अनुमति होगी।
योजना का कुल कार्यकाल सात वर्ष का होगा, जिसमें पहले दो वर्ष क्षमता निर्माण और अगले पांच वर्ष प्रोत्साहन वितरण के लिए निर्धारित हैं।
इस संरचना का उद्देश्य न केवल प्रारंभिक निवेश को आकर्षक बनाना है, बल्कि दीर्घकाल में भारत को वैश्विक REPM बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाना भी है।
भारत का संसाधन आधार
भारत दुर्लभ-मृदा संसाधनों के मामले में एक मजबूत आधार रखता है। देश के तटीय और अंतर्देशीय क्षेत्रों में फैले मोनाजाइट भंडारों में लगभग 13.15 मिलियन टन संसाधन होने का अनुमान है, जिनमें से लगभग 7.23 मिलियन टन दुर्लभ-मृदा ऑक्साइड (REO) निहित हैं। ये संसाधन आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, झारखंड, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पाए जाते हैं।
इसके अतिरिक्त, गुजरात और राजस्थान के कठोर चट्टानी क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण इन-सीटू REO संसाधनों की पहचान की गई है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा किए गए हालिया अन्वेषणों से यह स्पष्ट हुआ है कि भारत के पास REPM सहित विभिन्न दुर्लभ-मृदा आधारित उद्योगों को दीर्घकाल तक समर्थन देने की पर्याप्त क्षमता मौजूद है।
भविष्य की मांग और आवश्यकता
विशेषज्ञों का अनुमान है कि इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और रक्षा क्षेत्र में तेजी से हो रहे विस्तार के कारण भारत में REPM की मांग वर्ष 2030 तक लगभग दोगुनी हो सकती है। ऐसे में यदि घरेलू उत्पादन क्षमता विकसित नहीं की जाती, तो आयात निर्भरता और रणनीतिक जोखिम दोनों बढ़ सकते हैं।
REPM योजना इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है, ताकि भविष्य की मांग को समय पर और सुरक्षित तरीके से पूरा किया जा सके।
राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से तालमेल
यह योजना भारत की कई प्रमुख राष्ट्रीय पहलों के साथ सीधे जुड़ती है। यह आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) और नेट ज़ीरो 2070 जैसे दीर्घकालिक लक्ष्यों को मजबूती प्रदान करती है।
दुर्लभ-मृदा चुंबक ऊर्जा-कुशल मोटरों और हरित प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन को गति मिलती है। साथ ही, रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रों में इनका उपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
वैश्विक संदर्भ और भारत के अवसर
वैश्विक स्तर पर दुर्लभ-मृदा आपूर्ति श्रृंखलाओं में हाल के वर्षों में कई व्यवधान देखने को मिले हैं। ऐसे में भारत ने खनिज-समृद्ध देशों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाने के प्रयास तेज किए हैं। ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, अफ्रीकी देशों और लैटिन अमेरिका के साथ समझौते इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं।
इसके अलावा, खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) के माध्यम से भारत विदेशों में रणनीतिक खनिज संपदाओं की खोज और अधिग्रहण कर रहा है, जिससे घरेलू उद्योगों के लिए कच्चे माल की सुरक्षित आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।
दुर्लभ मृदा स्थायी चुंबक विनिर्माण योजना भारत के औद्योगिक और तकनीकी भविष्य के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। यह पहल न केवल आयात निर्भरता को कम करेगी, बल्कि उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भारत को वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाएगी। रोजगार सृजन, निवेश आकर्षण और रणनीतिक आत्मनिर्भरता के साथ-साथ यह योजना Viksit Bharat @2047 के दृष्टिकोण को भी साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।