Pehalgam Terrorist Attack | सीमाओं में बंधी: पहलगाम हमले के बाद भारतीय महिलाओं की दुखद जंग
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Women Stuck at Wagah Border
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारतीय नागरिक महिलाओं को पाकिस्तान लौटने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
वाघा-अटारी बॉर्डर पर महिलाएं अपने परिवार से मिलने के लिए संघर्ष कर रही हैं, लेकिन भारतीय पासपोर्ट के कारण उन्हें पाकिस्तान जाने की अनुमति नहीं मिल रही है।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया है। इस हमले ने न सिर्फ दो देशों के रिश्तों को प्रभावित किया, बल्कि सीमापार शादी कर भारतीय महिलाओं को भी दवाब और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वाघा-अटारी बॉर्डर पर कई ऐसी महिलाएं हैं, जिनका भारतीय पासपोर्ट होने की वजह से उन्हें पाकिस्तान जाने की अनुमति नहीं मिल पा रही है। इन महिलाओं का दर्द तब और बढ़ गया जब भारतीय सरकार ने 48 घंटे के भीतर पाकिस्तान वापस लौटने का आदेश दिया।
इन्हीं महिलाओं में से एक हैं राजस्थान की अफशीन जहांगीर। अफशीन जहांगीर, जो पिछले 11 साल से पाकिस्तान में अपने पति के साथ रह रही हैं, अपनी पूरी यात्रा को लेकर असमंजस में हैं। उन्होंने कहा कि वे भारतीय नागरिक हैं, लेकिन उनका परिवार पाकिस्तान में है। उनके दो बच्चे पाकिस्तान में हैं, जिनके पास पाकिस्तानी नागरिकता है। अफशीन ने बताया कि वे वैध वीजा पर यात्रा कर रही थीं, लेकिन अचानक आतंकवादी हमले के बाद उन पर लगाई गई पाबंदियों के कारण उन्हें पाकिस्तान लौटने की इजाजत नहीं दी जा रही। अफशीन की आंखों में आंसू थे, क्योंकि उन्हें अपने परिवार से अलग किया जा रहा था।
इसी तरह की एक और महिला वाजिदा खान ने भी अपनी परेशानी साझा की। उन्होंने कहा कि उनके बच्चे पाकिस्तानी नागरिक हैं, लेकिन वे अपने बच्चों के बिना नहीं रह सकतीं। वाजिदा ने बताया कि वे भारत लाकर अपने बच्चों को यहां लाईं थीं, लेकिन अब वे भी फंसी हुई हैं। उनके पति पाकिस्तान में हैं और उन्हें उनके पास जाने के लिए वापस पाकिस्तान लौटने की इजाजत नहीं मिल रही। वाजिदा और अफशीन जैसी महिलाओं का कहना है कि वे पूरी तरह से वैध वीजा पर यात्रा कर रही थीं, लेकिन अचानक लगाई गई पाबंदियों ने उनकी जिंदगी को कठिन बना दिया है।
इस स्थिति में महिलाएं परेशान हैं, क्योंकि अटारी बॉर्डर पर उन्हें 48 घंटे के भीतर पाकिस्तान लौटने के आदेश दिए गए हैं। एक महिला ने कहा, "यह कैसे संभव है? अटारी जोधपुर से 900 किलोमीटर दूर है और हमे बसें नहीं मिल रही हैं। मेरे पति ने टिकट के लिए 1 लाख रुपये का नुकसान उठाया, फिर भी हम अपने परिवार से नहीं मिल पा रहे हैं।" महिलाओं का यह भी कहना है कि उनकी स्थिति में आतंकवादी हमले का कोई दोष नहीं है। उनका कहना है कि सामान्य नागरिकों को इसके परिणामों के रूप में क्यों भुगतना पड़ता है।
अफशीन जहांगीर ने अपनी बात में यह भी कहा कि वे आधी पाकिस्तानी हैं और उन्हें दोनों देशों से समान प्रेम और सम्मान है। उनका कहना था कि इस स्थिति में दोनों देशों को आम नागरिकों का ख्याल रखना चाहिए और महिलाओं के लिए सीमापार यात्रा के दौरान कुछ विकल्प खुले रखने चाहिए। यह मुद्दा केवल सीमा पार शादी करने वाली महिलाओं का नहीं, बल्कि उनके बच्चों और परिवारों का भी है, जो इस समय आपसी रिश्तों में घिरे हुए हैं।
इन महिलाओं की स्थिति ने यह सवाल उठाया है कि क्या युद्ध और आतंकवाद की समस्याओं को आम नागरिकों के बीच क्यों फैलाया जाता है। क्या इन महिलाओं और उनके जैसे परिवारों को केवल उनके पासपोर्ट या नागरिकता के आधार पर ही बांटा जाना चाहिए? क्या किसी आतंकवादी हमले का सामान्य नागरिकों से कोई वास्ता हो सकता है?
इस समय, इन महिलाओं का दर्द और परेशानियाँ केवल भारत और पाकिस्तान के रिश्तों का परिणाम नहीं हैं, बल्कि यह मानवता की एक कड़ी भी है। इन्हें अपने परिवारों से अलग किया जा रहा है और यह कड़ी निंदा का विषय है। दोनों देशों की सरकारों को इस पर विचार करना चाहिए और ऐसे मामलों में आम नागरिकों की परेशानियों का समाधान निकालना चाहिए।