सियाचिन ग्लेशियर हिमस्खलन हादसा: 1 जवान और 2 अग्निवीर शहीद, भारत का रणनीतिक महत्व
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सियाचिन ग्लेशियर हादसे में 1 जवान और 2 अग्निवीर शहीद.
दुनिया का सबसे ऊँचा युद्ध क्षेत्र और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इलाका.
भारतीय सेना का ऑपरेशन मेघदूत और रणनीतिक नियंत्रण की अहमियत.
Ladakh / लद्दाख के सियाचिन ग्लेशियर से एक दर्दनाक खबर सामने आई है। मंगलवार को यहां स्थित बेस कैंप पर अचानक आए एक भीषण हिमस्खलन की चपेट में सेना का एक जवान और दो अग्निवीर शहीद हो गए। रक्षा सूत्रों के मुताबिक हादसा अचानक हुआ और मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद बचाव दल तुरंत राहत कार्य में जुट गया। सेना ने हादसे के बाद क्षेत्र में मौजूद अन्य जवानों को सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया है। जिन जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी, उनकी पहचान सिपाही मोहित कुमार, अग्निवीर नीरज कुमार चौधरी और अग्निवीर डाभी राकेश देवभाई के रूप में हुई है।
सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र माना जाता है। यहां का तापमान कई बार शून्य से 60 डिग्री सेल्सियस नीचे तक चला जाता है, जिससे यहां तैनात सैनिकों को अत्यंत कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। सैनिकों को अक्सर फ्रॉस्टबाइट की समस्या होती है, जिसमें अत्यधिक ठंड के कारण शरीर का कोई हिस्सा सुन्न हो जाता है। इसके अलावा सांस लेने में तकलीफ, दिमागी सुन्नता और कोल्ड इंजरी जैसी समस्याएं भी आम हैं। फिर भी भारतीय सैनिक इस कठिन इलाके में देश की सुरक्षा में डटे रहते हैं।
सियाचिन ग्लेशियर सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह लगभग 78 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास स्थित है। इसके एक ओर पाकिस्तान और दूसरी ओर चीन का अक्साई चिन क्षेत्र है। यही कारण है कि भारत के लिए यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से अहम माना जाता है। यहां से दुश्मन की गतिविधियों पर सीधी नजर रखी जा सकती है और लेह से गिलगित जाने वाले रास्तों पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
इतिहास की दृष्टि से देखा जाए तो 1984 से पहले इस इलाके में न तो भारत और न ही पाकिस्तान की सेना की मौजूदगी थी। 1972 के शिमला समझौते में सियाचिन को निर्जन और बंजर क्षेत्र माना गया था, लेकिन यहां की सीमाओं का स्पष्ट निर्धारण नहीं हो पाया। इसी का फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश शुरू की। भारतीय खुफिया एजेंसियों को जब इसकी जानकारी मिली, तो तत्काल कदम उठाए गए।
13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया और सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। यह अभियान भारतीय सेना की सबसे बड़ी सामरिक उपलब्धियों में से एक माना जाता है। इसके बाद से भारत ने लगातार इस क्षेत्र पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी है। पाकिस्तान की कई कोशिशों के बावजूद वह कभी इस क्षेत्र पर कब्जा नहीं कर पाया।
सियाचिन ग्लेशियर का क्षेत्र न केवल पाकिस्तान बल्कि चीन से भी जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र पाक अधिकृत कश्मीर (PoK), अक्साई चिन और शक्सगाम घाटी से सटा हुआ है। उल्लेखनीय है कि शक्सगाम घाटी पाकिस्तान ने 1963 में चीन को सौंप दी थी। ऐसे में इस इलाके की सामरिक महत्ता और भी बढ़ जाती है क्योंकि यहां से दोनों पड़ोसी देशों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जा सकती है।
इस हादसे ने एक बार फिर यह याद दिला दिया है कि देश की सुरक्षा में तैनात हमारे सैनिक कितनी कठिन परिस्थितियों में अपनी ड्यूटी निभाते हैं। बर्फीले तूफान, हिमस्खलन और जानलेवा ठंड के बावजूद वे अपनी जान की बाज़ी लगाकर देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं। सियाचिन ग्लेशियर में तैनात हर जवान का साहस और बलिदान भारतीय सेना की वीरता और राष्ट्रप्रेम का प्रतीक है।