‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ का लोकार्पण: IGNCA में सांस्कृतिक विरासत की सिनेमाई पुनर्खोज

Fri 19-Dec-2025,12:05 PM IST +05:30

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‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ का लोकार्पण: IGNCA में सांस्कृतिक विरासत की सिनेमाई पुनर्खोज
  • IGNCA द्वारा निर्मित फिल्म जम्मू-कश्मीर की प्राचीन आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दुर्लभ स्थलों के माध्यम से पुनः प्रस्तुत करती है।

  • ‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ कश्मीर को संघर्ष नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की जड़ों से जोड़ने वाले सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित करती है।

  • फिल्म और कॉफी टेबल बुक युवा पीढ़ी को कश्मीर के वास्तविक इतिहास, मंदिर परंपराओं और दार्शनिक चेतना से जोड़ने का प्रयास है।

Jammu and Kashmir / Jammu :

Jammu & Kashmir/ जम्मू और कश्मीर को अक्सर केवल प्राकृतिक सौंदर्य या हालिया संघर्षों के संदर्भ में देखा जाता है, लेकिन यह भूमि प्राचीन काल से भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक चेतना का एक प्रमुख केंद्र रही है। इसी गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आयाम को सामने लाने के उद्देश्य से ‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ शीर्षक फिल्म और कॉफी टेबल बुक का लोकार्पण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन आईजीएनसीए के मीडिया केंद्र द्वारा किया गया।

इस फिल्म का निर्माण आईजीएनसीए ने किया है। इसके लेखक एवं सह-निर्माता श्री राजन खन्ना हैं, जबकि निर्देशन और संपादन की जिम्मेदारी शिवांश खन्ना ने निभाई है। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने की। इस अवसर पर वरिष्ठ लेखक एवं प्रसारक श्री गौरीशंकर रैना और मीडिया केंद्र के नियंत्रक श्री अनुराग पुनेठा भी उपस्थित रहे। लोकार्पण के बाद ‘संस्कृति: जम्मू और कश्मीर’ विषय पर एक सार्थक पैनल चर्चा आयोजित की गई।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अपने संबोधन में कहा कि फिल्म में दिखाए गए कई स्थलों पर शूटिंग करना अत्यंत कठिन था, क्योंकि ये क्षेत्र भौगोलिक रूप से दुर्गम हैं और कई स्थानों तक पहुंच हाल के वर्षों में और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है। उन्होंने कहा कि ऐसे दुर्लभ स्थलों को फिल्म के माध्यम से दस्तावेज़ करना एक ऐतिहासिक कार्य है। डॉ. जोशी के अनुसार, जब इतिहास और परंपराओं को मिटाने या विकृत करने के प्रयास हो रहे हैं, तब यह फिल्म एक प्रकाशस्तंभ की तरह खड़ी होकर आने वाली पीढ़ियों को उनके वास्तविक सांस्कृतिक मूल से जोड़ने का काम करेगी।

फिल्म के लेखक श्री राजन खन्ना ने कहा कि जिस प्रकार शरीर और आत्मा का गहरा संबंध होता है, उसी तरह राष्ट्र, संस्कृति और भूगोल भी एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर को केवल हालिया इतिहास या आतंकवाद तक सीमित कर देना उसकी 10,000 वर्ष पुरानी सभ्यतागत विरासत के साथ अन्याय है। कश्मीर का इतिहास ऋग्वेद, राजतरंगिणी और प्राचीन नगरों जैसे अनंतनाग से जुड़ा है, जिसे पुनः सामने लाना समय की आवश्यकता है।

वरिष्ठ लेखक श्री गौरीशंकर रैना ने कहा कि मंदिरों और सांस्कृतिक स्थलों पर आधारित फिल्म बनाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि इसके लिए लंबी अनुमतियां, कठिन यात्राएं और गहन शोध की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में फिल्म एक प्रभावशाली माध्यम है, जिसके जरिए गंभीर सांस्कृतिक विमर्श को आम लोगों तक पहुंचाया जा सकता है।

अपने उद्घाटन वक्तव्य में श्री अनुराग पुनेठा ने कहा कि जब पिछले कई दशकों से कश्मीर को केवल संघर्ष के चश्मे से देखा गया है, ऐसे समय में यह फिल्म वहां की जीवंत और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सामने लाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यह फिल्म जम्मू और कश्मीर को उसकी स्मृति, आध्यात्मिक परंपराओं और सांस्कृतिक निरंतरता के साथ फिर से जोड़ती है।