भारत-यूएई डेजर्ट साइक्लोन-II अभ्यास से शहरी युद्ध प्रशिक्षण और रक्षा सहयोग मजबूत
ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |
डेजर्ट साइक्लोन-II अभ्यास भारत–यूएई सेनाओं के बीच शहरी युद्ध, आतंकवाद विरोधी और शांति स्थापना अभियानों में अंतर-संचालन क्षमता को मजबूत करता है।
संयुक्त अभ्यास में यूएएस और काउंटर-यूएएस तकनीकों का एकीकरण आधुनिक सैन्य रणनीति और तकनीकी सहयोग को दर्शाता है।
यह अभ्यास भारत और यूएई की गहरी रणनीतिक साझेदारी, सैन्य कूटनीति और क्षेत्रीय सुरक्षा प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है।
Delhi/ भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तहत भारतीय सेना का एक दल भारत-यूएई संयुक्त सैन्य अभ्यास “डेजर्ट साइक्लोन-II” में भाग लेने के लिए यूएई रवाना हो गया है। इस अभ्यास का दूसरा संस्करण 18 से 30 दिसंबर 2025 तक अबू धाबी में आयोजित किया जाएगा।
भारतीय दल में कुल 45 सैन्यकर्मी शामिल हैं, जिनमें अधिकांश एक मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री रेजिमेंट की बटालियन से हैं। वहीं, यूएई थल सेना का प्रतिनिधित्व 53वीं मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री बटालियन द्वारा किया जाएगा, जिसकी संख्या भी लगभग समान है। यह संतुलित भागीदारी दोनों देशों की सेनाओं के बीच समानता, सहयोग और आपसी विश्वास को दर्शाती है।
इस संयुक्त अभ्यास का प्रमुख उद्देश्य शहरी युद्ध परिदृश्यों में दोनों सेनाओं के बीच अंतर-संचालन क्षमता (Interoperability) को बढ़ाना और संयुक्त राष्ट्र के जनादेश के तहत संभावित अभियानों के लिए तैयारियों को सुदृढ़ करना है। अभ्यास में शांति स्थापना, आतंकवाद विरोधी अभियानों और स्थिरता अभियानों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
लगभग दो सप्ताह तक चलने वाले इस अभ्यास के दौरान सैनिक शहरी क्षेत्रों में युद्ध कौशल, हेलीकॉप्टर आधारित अभियानों, मिशन प्लानिंग और आधुनिक सैन्य तकनीकों के उपयोग का संयुक्त प्रशिक्षण लेंगे। विशेष रूप से शहरी अभियानों में यूएएस (ड्रोन) और काउंटर-यूएएस तकनीकों के एकीकरण पर फोकस किया जाएगा, जो आधुनिक युद्ध की आवश्यकताओं को दर्शाता है।
यह अभ्यास हाल ही में हुई उच्चस्तरीय सैन्य यात्राओं-जैसे यूएई थल सेना कमांडर और राष्ट्रपति गार्ड कमांडर की भारत यात्राओं-की गति को आगे बढ़ाता है। डेजर्ट साइक्लोन-II भारत और यूएई के बीच गहरी रणनीतिक साझेदारी, सैन्य कूटनीति और क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा एवं स्थिरता के प्रति साझा प्रतिबद्धता को मजबूत करता है। इससे दोनों सेनाओं के बीच पेशेवर संबंध, रणनीतिक समझ और तकनीकी समन्वय को और मजबूती मिलेगी।