गिग वर्करों को कानूनी पहचान, पोर्टेबल लाभ व सामाजिक सुरक्षा कोष के साथ बड़ा सुधार लागू
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सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 के तहत गिग और प्लेटफॉर्म कामगारों को पहली बार कानूनी पहचान और पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान किए गए।
एग्रीगेटर कंपनियां अब अपने टर्नओवर का 1–2% सामाजिक सुरक्षा कोष में देंगी, जिससे बीमा, पेंशन और वेलफेयर योजनाएं संचालित होंगी।
ई-श्रम आधारित आधार-लिंक्ड आईडी के साथ लाभ प्लेटफॉर्म बदलने पर भी जारी रहेंगे; शिकायत निवारण के लिए हेल्पलाइन व फैसिलिटेशन सेंटर की व्यवस्था।
भारत की गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था लगातार विस्तार कर रही है और देश के डिजिटल एवं शहरी आर्थिक ढांचे की एक मजबूत शक्ति के रूप में उभर चुकी है। तेजी से बढ़ती युवा आबादी, टेक्नोलॉजी की स्वीकार्यता और तेज शहरीकरण ने इस मॉडल को रोजगार सृजन का बड़ा माध्यम बनाया है। ऐसे में सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत किया गया सुधार इस क्षेत्र के करोड़ों कामगारों को औपचारिक पहचान और सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।
पहली बार, गिग और प्लेटफॉर्म कामगार जिन्हें पहले असंगठित क्षेत्र का हिस्सा माना जाता था, अब कानूनी पहचान और सामाजिक सुरक्षा अधिकारों के दायरे में आ गए हैं। संहिता ने “एग्रीगेटर”, “गिग वर्कर” और “प्लेटफॉर्म वर्कर” जैसी स्पष्ट परिभाषाएं शामिल करके इस क्षेत्र के लिए एक पारदर्शी ढांचा तैयार किया है। इससे कैब ड्राइवर, फूड डिलीवरी पार्टनर, फ्रीलांसर, एप-आधारित तकनीकी सेवा प्रदाता, और अन्य डिजिटल कार्यबल को पहचान मिलती है।
सुधार के केंद्र में एक महत्वपूर्ण प्रावधान सामाजिक सुरक्षा कोष है, जिसके लिए एग्रीगेटर कंपनियों को अपने वार्षिक कारोबार का 1–2% या गिग वर्कर भुगतान का 5% तक योगदान करना अनिवार्य किया गया है। यह कोष स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना कवर, मातृत्व लाभ, पेंशन और अन्य वेलफेयर योजनाओं के लिए वित्त प्रदान करेगा। इससे पहले इन कामगारों के लिए सुरक्षा या वित्तपोषण की कोई बाध्यता निर्धारित नहीं थी।
इसके अलावा, ई-श्रम के जरिए गिग और प्लेटफॉर्म कामगारों को आधार-लिंक्ड यूनिक आईडी प्रदान की जाएगी, जिससे सामाजिक सुरक्षा लाभ पूरी तरह पोर्टेबल हो जाएंगे। यानी कामगार चाहे प्लेटफॉर्म बदलें, कई प्लेटफॉर्म पर कार्य करें या बार-बार भूमिका बदलें, उनके सामाजिक सुरक्षा लाभ जारी रहेंगे और कहीं भी उपयोग किए जा सकेंगे।
शिकायत निवारण के लिए भी हेल्पलाइन, कॉल सेंटर और फैसिलिटेशन सेंटर्स की व्यवस्था की जाएगी, ताकि नौकरी संबंधी शिकायतों का तुरंत समाधान सुनिश्चित हो सके।
कुल मिलाकर, यह सुधार भारत की गिग इकोनॉमी को असंगठित और जोखिमपूर्ण रोजगार के प्रारूप से सुरक्षित, औपचारिक और अधिकार-आधारित ढांचे में परिवर्तित कर देगा। डिजिटल अर्थव्यवस्था की वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कामगारों को अंततः वह सुरक्षा मिल रही है जिसकी वे लंबे समय से प्रतीक्षा कर रहे थे।