कर्नाटक में ‘मुफ़्त बिजली’ बनाम सोलर सब्सिडी का टकराव, रूफटॉप सोलर मिशन की रफ्तार थमी
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मुफ्त बिजली योजना से सोलर सब्सिडी नीति प्रभावित, इंस्टॉलेशन दर घटी।
95% तक आवेदन भ्रम और गलतफहमियों के कारण लंबित।
विशेषज्ञों ने नीति तालमेल और जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया।
बैंगलोर / कर्नाटक में राज्य सरकार की ग्रुह ज्योति मुफ्त बिजली योजना और केंद्र की रूफटॉप सोलर सब्सिडी नीति के बीच सीधा टकराव सामने आ रहा है, जिससे ग्रीन एनर्जी ट्रांज़िशन की गति धीमी पड़ गई है। राज्य की मुफ्त बिजली योजना के तहत उपभोक्ताओं को प्रति माह 200 यूनिट तक बिजली बिना बिल के मिलती है, जिसके कारण लोग सोलर पैनल लगाने की दिशा में आगे बढ़ने से हिचक रहे हैं। केंद्र सरकार की योजना के अनुसार, 3 किलोवाट तक की सोलर इंस्टॉलेशन पर लगभग ₹78,000 की सब्सिडी दी जाती है, लेकिन इसके लिए उपभोक्ताओं को पहले अपनी जेब से लगभग ₹2.25 लाख का निवेश करना होता है। मुफ्त बिजली पाने वाले उपभोक्ता इस प्रारंभिक खर्च को अनावश्यक समझ रहे हैं, जिसके कारण रूफटॉप सोलर इंस्टॉलेशन की मांग में भारी गिरावट आई है।
इस भ्रम ने बिजली वितरण कंपनियों Escoms पर भी अतिरिक्त दबाव बढ़ा दिया है। बड़ी संख्या में लोग यह मानकर आवेदन कर रहे थे कि सोलर पैनल पूरी तरह “बिना लागत” उपलब्ध होंगे, जबकि सच्चाई यह है कि सब्सिडी बाद में मिलती है। इसी गलतफहमी के चलते लगभग 95% आवेदन अटके पड़े हैं, जिससे कार्यप्रणाली और मंजूरी प्रक्रिया बेहद धीमी हो गई है। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि मुफ्त बिजली योजना भले ही उपभोक्ताओं को राहत देती है, लेकिन यह दीर्घकाल में आर्थिक रूप से टिकाऊ नहीं है। सोलर पैनल लगाने से न केवल उपभोक्ताओं को फायदा होता है, बल्कि डिस्कॉम को भी कमीशनिंग, ट्रांसमिशन और वितरण लागत में कमी आती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि राज्य और केंद्र सरकार मिलकर नीतियों में सामंजस्य स्थापित करें, जागरूकता बढ़ाएँ और सब्सिडी प्रक्रियाएँ सरल बनाएं, तभी कर्नाटक रूफटॉप सोलर के लक्ष्यों को प्रभावी रूप से प्राप्त कर पाएगा और स्वच्छ ऊर्जा मिशन तेज गति पकड़ सकेगा।